गीतिका/ग़ज़ल

मेरी सबसे लम्बी ग़ज़ल के 50 अशआर

तू न मेरा हो सका तो क्या हुआ ।
हो गया है फिर जुदा तो क्या हुआ ।।

हम सफ़र था जिंदगी का वो मिरे ।
बस यहीं तक चल सका तो क्या हुआ।।

मैकदों की वो फ़िजा भी खो गई ।
वक्त पर वो चल दिया तो क्या हुआ ।।

फिर यकीं का खून कर के वह गयी ।
दर्द दिल का कह लिया तो क्या हुआ।।

सुर्ख लब पे रात भर जो हुस्न था ।
तिश्नगी में बह गया तो क्या हुआ ।।

डर गया इंसान अपनी मौत से ।
खो गया वो हौसला तो क्या हुआ ।।

फिर हक़ीक़त खुल गयी चेहरे से है ।
हो गयी तू बेवफा तो क्या हुआ ।।

चन्द मिसरे थे ग़ज़ल में दर्द के ।
उम्र भर पढ़ता रहा तो क्या हुआ ।।

थी बहुत चर्चा मिजाजे इश्क़ की ।
हो गई हम पर फ़िदा तो क्या हुआ ।।

आसुओं में फिर बहे हैं हौसले ।
वह नही कुछ मानता तो क्या हुआ ।।

खर्च हो जाती है अक्सर जिंदगी ।
है नहीं हासिल नफा तो क्या हुआ।।

रेत पर था वो घरौंदा भी बना ।
गर लहर से वह मिटा तो क्या हुआ ।।

था बहुत अंजाम से वह बेखबर ।
घर नया उसका बिका तो क्या हुआ।।

जर्द पत्तों की तरह वह गिर गया ।
थी बड़ी हल्की हवा तो क्या हुआ ।।

ढह गयी दिल की इमारत शान से ।
नाम था लिक्खा हुआ तो क्या हुआ।।

कुछ दुआएं माँ की उसके साथ थीं ।
कुछ उसे तोहफ़ा मिला तो क्या हुआ ।।

भूंख से बच्चे ने तोडा दम यहाँ ।
दूध शंकर पर चढ़ा तो क्या हुआ ।।

उम्र भर तरसा जो रोटी के लिए ।
लाश पर चंदा हुआ तो क्या हुआ ।।

हैं बहुत हाजी नगर में आज भी ।
है गरीबो से जफ़ा तो क्या हुआ ।।

पी गया है वह समन्दर उम्र तक ।
अब सड़क पर आ गया तो क्या हुआ ।।

जीत जाएगा वही शातिर यहाँ ।
है रगों में भ्रष्टता तो क्या हुआ ।।

जेब अपनी गर्म होनी चाहिए ।
रुपया है गैर का तो क्या हुआ ।।

लुट रहा है मुल्क वर्षो से यही ।
अब कोई लड़ने चला तो क्या हुआ ।।

फिर बदायूं और यमुना वे मिले ।
है यही उसकी अदा तो क्या हुआ ।।

क्यों उसे खुजली हुई कानून से ।
नोट आया गर नया तो क्या हुआ ।।

है इलेक्शन से उसे शिकवा बहुत ।
धन नही काला बचा तो क्या हुआ ।।

बुन रहें हैं साजिशें सब जात की ।
वह तरक्की मांगता तो क्या हुआ ।।

आ गई जो बज्म में उल्फत नई ।
गर कोई दिल टूटता तो क्या हुआ ।।

हाँ पता मालूम था घर का उसे ।
खत नहीं कोई लिखा तो क्या हुआ ।।

बेबसी का लुत्फ़ सब लेते रहे ।
सिर्फ वो मुझको पढ़ा तो क्या हुआ।।

आईने से हर हक़ीक़त जानकर ।
रात भर रोता रहा तो क्या हुआ ।।

वह रिहाई बाँटती थी इश्क़ की ।
हो गया तू भी रिहा तो क्या हुआ ।।

बेखुदी में डूब जाने के लिए ।
दिल मेरा तुझसे मिला तो क्या हुआ ।।

बिन हुनर वह आग के दरिया में है ।
फिर मुहब्बत में जला तो क्या हुआ ।।

था कहाँ वह इश्क़ के काबिल कभी ।
अक्ल पर पत्थर पड़ा तो क्या हुआ ।।

इस ताल्लुक़ का भी गहरा सा असर ।
बोझ अब लगने लगा तो क्या हुआ ।।

डस गयी नागन हो जिसके जिस्म को ।
फिर भी वो हँसता मिला तो क्या हुआ ।।

यह तबस्सुम है तेरा जालिम बहुत ।
मैं सलामत बच गया तो क्या हुआ ।।

फिर हवा से क्यों दुपट्टा उड़ गया ।
साजिशों की थी अदा तो क्या हुआ ।।

चाँद शरमाया हुआ है आजकल ।
इश्क़ की अर्जी दिया तो क्या हुआ ।।

जुर्म है सच बोलना यारों यहां ।
झूठ पर पर्दा किया तो हुआ ।।

कत्ल खानो से तेरा था वास्ता ।
बन गया मकतूल सा तो क्या हुआ ।।

थी तरन्नुम में पढ़ी उसने गजल ।
दिल उसी पे आ गया तो क्या हुआ ।।

शक की ख़ातिर लुट गई इज्जत सभी ।
आदमी ठहरा भला तो क्या हुआ ।।

है बहुत लाचार यह इंसान भी ।
जिस्म का सौदा किया तो क्या हुआ ।।

हारता पोरस सिकन्दर से यहां ।
वक्त से शिकवा गिला तो क्या हुआ ।।

हुस्न की तारीफ लिख आई कलम।
हो गई हमसे खता तो क्या हुआ ।।

तुम दगा दोगे न ये उम्मीद थी।
हो गया कुछ हादसा तो क्या हुआ ।।

इस सुखनवर में नए आलिम मिले ।
मैं नहीं इसमें ढला तो क्या हुआ ।।

ले गई दिल को हरम से छीनकर ।
थी मिली पहली दफ़ा तो क्या हुआ ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

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