धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर द्वारा सर्गारम्भ में ऋषियों को वेदज्ञान देने विषयक ऋषि दयानन्द के युक्तिसंगत विचार

ओ३म्

सत्यार्थ प्रकाश के सप्तम् समुल्लास में ऋषि दयानन्द ने प्रश्न उपस्थित किया है कि जब परमेश्वर निराकार है तो वेदविद्या का उपदेश बिना मुख के वर्णोच्चारण किये कैसे हो सका होगा, क्योंकि वर्णों के उच्चारण में ताल्वादि स्थान, जिह्वा का प्रयत्न अवश्य होना चाहिए।

ऋषि दयानन्द ने इसका समाधान निम्न शब्दों में किया हैः

परमेश्वर के सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक होने से जीवों को अपनी  व्याप्ति से वेदविद्या के उपदेश करने में कुछ भी मुखादि की अपेक्षा नहीं है, क्योंकि मुख, जिह्वा से वर्णोच्चारण अपने से भिन्न को बोध होने के लिए किया जाता है, कुछ अपने लिए नहीं, क्योंकि मुख जिह्वा के व्यापार करे विना ही मन में अनेक व्यवहारों का विचार और शब्द उच्चारण होता रहता है। कानों को अंगुलियों से मूंद के देखों, सुनों कि विना मुख, जिह्वा, ताल्वादि स्थानों के कैसेकैसे शब्द हो रहे हैं। वैसे जीवों को अन्तर्यामिरूप से उपदेश किया है, किन्तु केवल दूसरे को समझाने के लिए उच्चारण करने की आवश्यकता है। जब परमेश्वर निराकार, सर्वव्यापक है तो अपनी अखिल वेद विद्या का उपदेश जीवस्थ स्वरूप से जीवात्मा में प्रकाशित कर देता है। फिर वह मनुष्य (चार ऋषि) अपने मुख से उच्चारण करके दूसरों (ब्रह्मा जी आदि) को सुनाता(/सुनाते) हैं। इसलिए ईश्वर में यह दोष नहीं सकता (कि ईश्वर के निराकार होने वा उसके मुख जिह्वादि होने के कारण वह मनुष्यों को वेदों का ज्ञान नहीं दे सकता)।”

अतः निराकार परमेश्वर का विना मुख व जिह्वादि के भी जीवात्माओं को जीवस्थ स्वरूप से वेदों का ज्ञान देना सम्भव है और इसी प्रकार से ईश्वर ने सर्गारम्भ में चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। ऋषि दयानन्द जी द्वारा वेदों की प्राप्ति का यह समाधान समस्त विश्व को उनकी बहुत बड़ी देन है।

आज ऋषि दयानन्द के प्रयासों के कारण चारों वेद वेदार्थों सहित मानव जाति को प्राप्त व सुलभ हैं। सृष्टि के आरम्भ में यह चारों वेद मनुष्यों द्वारा स्वयं रचे नहीं जा सकते। अतः इनका ज्ञान ईश्वर से प्राप्त होना ही सम्भव व सिद्ध होता है। इनकी उपस्थिति भी इस बात का प्रमाण है कि निराकार ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में मुख व जिह्वादि न होने पर भी वेदों का ज्ञान दिया था जिसका प्रमाण स्वयं चार वेद हैं। आज भी संसार में वेद और इसके सिद्धान्तों व मानयताओं के अनुरूप सत्य व कल्याणी ज्ञान दूसरा कोई नहीं है। मनुष्य को चारों वेद व उनके वेदार्थ उपलब्ध कराने के लिए सारा संसार व मानवता उनकी ऋणी हैं। उस ऋषि को प्रणाम व नमन।

मनमोहन कुमार आर्य