गीत/नवगीत

एक गीत आप सबके लिए

गंगा दूषित हो जाएगी, लज्जित होते भूप मिलेंगे
कलयुग में ना जाने कितने, जयचंदों के रूप मिलेंगे

सब मनु रोगी हो जायेंगे, सैनिक लोभी हो जायेंगे 
नित्य नए नव धर्म चलेंगे, साधू भोगी हो जायेंगे 
सागर को उपदेशित करते, जग के सारे कूप मिलेंगे 
कलयुग में ना जाने कितने, जयचंदों के रूप मिलेंगे

ज्ञानी मौन रहेंगे जग में, अनपढ़ ज्ञानी हो जायेंगे 
सत्तालोभी, कपटी, द्रोही, सब अभिमानी हो जायेंगे 
भोली जनता को छलने को, नित्य नए प्रारूप मिलेंगे 
कलयुग में ना जाने कितने, जयचंदों के रूप मिलेंगे

विध्यारूपा शोषित होगी, मंचों पर लक्ष्मी छायेगी 
मर्यादा का मोल न होगा, लज्जा को लज्जा आयेगी 
लालच होगा सबसे ऊपर, सब इसके अनुरूप मिलेंगे 
कलयुग में ना जाने कितने, जयचंदों के रूप मिलेंगे

धोखा देकर जीत मिलेगी, दुष्टों के घर मीत मिलेंगे 
चारण हो जायेंगे सब कवि, रचते वन्दन गीत मिलेंगे 
झूठ पुरस्कृत होगा जग में, सत्य सदा विद्रूप मिलेंगे 
कलयुग में ना जाने कितने, जयचंदों के रूप मिलेंगे

अभिवृत अक्षांश