सबसे पास का रिश्ता
मांगेलाल के बहुत मांगने पर भी उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति नहीं हो सकी थी. इसका मलाल होते हुए भी, उन्होंने सब्र करना सीख लिया था. इसके अतिरिक्त वे कर भी क्या सकते थे! बेटियों की शादी हो गई थी. वे अपने-अपने घर खुश थीं. मांगेलाल भी समय-चक्र के अनुसार चल रहे थे. एक दिन उनका समय-चक्र रुक गया. घर में हाहाकार मच गया. तुरंत बेटियां-दामाद, भाई-भतीजे एकत्रित हो गए. सबको उन्हें अंतिम विदाई देने की जल्दी थी, पर मुखाग्नि कौन दे! दामाद को कोई यह हक नहीं दे रहा था. भाई-भतीजे 12 दिन के बंधन के कारण ना-नुकुर कर रहे थे. मांगेलाल के गांव के एक व्यक्ति का बेटा आगे आया. रिश्ता भले ही दूर का था, पर इंसानियत का तकाज़ा तो था ही.
सबने पूछा- ”क्या 12 दिन काम पर नहीं जाओगे?”
”आजकल काम पर जाने का बंधन ही कहां होता है? लैपटॉप और फोन से कभी भी, कहीं भी रहकर काम कर लो. दूर के रिश्ते के कारण कोई ऐतराज़ न हो, तो मैं हाज़िर हूं.”
”यही तो सबसे पास का रिश्ता है.” क्रियाकर्म कराने वाले पंडितजी का कहना था.