कविता

सोलह कला संग में मोहन

हाथ गुलाबी फूल
हिया में बिधते उसके शूल
गजब दस्तूर वसूल |
लोहे को पारस ने छूकर
उसको किया निर्मूल
जहाँ का अजब -गजब दस्तूर |
माया स्वप्न में आकर कहती
राज तेरे वसूल
दुनियाँ माया मोहित रूप |
कौन अमर दुनियाँ में आया
राम कृष्ण बदनाम
पड़ा है छलिया इनका नाम |
राजा बाली को छिप हरि मारे
कैसे राम लाचार
मिला था उसको यूँ वरदान |

अग्नि परीक्षा पत्नी लेते
देते देश निकाल
कहाँ का भगवन ये सम्मान |
चली बिलखती जंगल जंगल
सुमिरि हिया हरि नाम
मिला है पावन ऋषि का धाम
कहो हरि कैसा तेरा न्याय |
सोलह कला संग में मोहन
गोपी रास रचाते थे ,
माँ नें बरबस झूठ बोलते
माखन नहीं चुराता हूँ |

कालयवन को देख भागते
वे रणछोड़ कहाते हैं
मेरे भोले भाले मोहन
कैसे रास रचाते हैं?

राजकिशोर मिश्र ‘राज’

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि