उपन्यास अंश

आजादी भाग –२५

राहुल जमीन पर पड़े पड़े ही सो गया था । कमोबेश सभी बच्चों की यही हालत थी । रात में ठण्ड की वजह से ठिठुरते रहे थे । नींद पूरी हुई नहीं थी और अब इस कदर गहरी नींद सो गए थे कि उन्हें धूप का भी अहसास नहीं था । सुबह की गुदगुदाती धूप की किरणों के बाद ज़माने की तरह अब धूप ने भी उन मासूम बच्चों को अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया था । सुबह की गुनगुनाती किरणों की जगह जब दुपहर की तेज धूप ने उन मासूम बच्चों की त्वचा को जलाना शुरू कर दिया था । बच्चों को नींद से जगाने के लिए भूख ने भी सूरज से जुगलबंदी कर ली थी । पेट में चूहे भी उछलकुद मचाने लगे थे । आखिर इस दोतरफा हमले के सामने निंदिया रानी कब तक टिक पाती ? एक एक कर सभी उठ कर एक तरफ छांव में जाकर बैठ गए थे । राहुल भी उठकर एक किनारे दीवार से पीठ टिकाकर बैठा हुआ कुछ सोच रहा था । पेट में चूहे घुड़दौड़ अलग मचाये हुए थे । भूख शांत करने के लिए पानी का सहारा लेने की सोच नल के पास पहुँच गया । नल से पानी पीते पीते उसकी नजर सामने की दीवार में ऊपर की तरफ बने एक छोटे से खाने पर पड़ी । उस खाने में उसे दो शीशियाँ रखी नजर आयीं । अपनी कमीज से हाथ पोंछता हुआ राहुल उस खाने के पास तक आ गया और लपक कर वह शीशी उठाना चाहा , लेकिन वह खाना अभी उसकी पहुँच से दूर उंचाई पर था । घूम कर उसने अपने साथियों की तरफ नजर दौडाई । वो सब भी राहुल की इस हरकत को देख रहे थे लेकिन उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।
राहुल ने बंटी को नजदीक बुलाया । बंटी के साथ ही टीपू और मनोज सहित सारे बच्चे राहुल के नजदीक पहुँच गए । राहुल ने मनोज को जो कि उसकी अपेक्षा थोडा लम्बा था थोडा झुकने के लिए कहा और टीपू को उसके कंधे पर बैठा दिया । मनोज कुछ समझ नहीं पाया था यह क्या हो रहा है लेकिन उसकी ओर बिना कुछ ध्यान दिए राहुल ने टीपू को सामने खाने में रखी शीशी उठाकर उसे पकड़ाने के लिए कहा । टीपू समझ गया और उसने आसानी से एक हाथ से मनोज के सर को थामे दुसरे हाथ से वह दोंनों शीशी उतारकर राहुल के हाथों में थमा दिया । शीशी को हाथों में लेकर राहुल के आँखों की चमक बढ़ गयी । जल्दी से शीशी को बंटी को पकड़ा कर राहुल ने टीपू को मनोज के कंधे से निचे उतरने में मदद की ।
मनोज सहित सभी बच्चों को अभी तक राहुल की हरकतें समझ में नहीं आ रही थीं । आखिर मनोज से रहा नहीं गया । पुछ ही बैठा ” राहुल ! तु ये क्या कर रहा है ? हम लोगों को कुछ बता क्यूँ नहीं रहा है ? ”
राहुल ने उसकी बातें अनसुनी करके शीशी हाथ में पकडे हुए ही उन्हें दिखाते हुए बोला ” याद है मनोज ! असलम भाई के यहाँ जब हमें कमरे में बंद रखा गया था वहां भी ऊपर रैक पर ऐसी ही एक शीशी थी । ”
मनोज सहित सभी बच्चों ने कुछ याद करते हुए बारी बारी से सहमति में सर हिलाया । मनोज बोला ” हां ! याद आया ! बिलकुल ऐसी ही एक शीशी वहाँ भी रखी हुयी थी । लेकिन उसमें ऐसी क्या बात है जो तुम समझ रहे हो ? ”
राहुल मुस्कुराते हुए बोला ” यही तो बात है मनोज ! मैं जो देख रहा हूँ वो तुममें से किसी को नहीं दिख रहा है । मैं इस शीशी में हम सबकी रिहाई का रास्ता देख रहा हूँ । बस एक शंका है । ”
मनोज सहित सभी बच्चे चौंकने के साथ ही रिहाई की बात सुनकर खुश भी हो गए । तुरंत ही टीपू बोल पड़ा ” राहुल भैया ! क्या हम लोग सचमुच यहाँ से निकल पाएंगे ? ”
राहुल उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसके गालों को प्यार से थपकते हुए बोला ” बिलकुल सच्ची ! हम सब लोग बहुत जल्दी यहाँ से निकल जायेंगे । ”
मनोज भारी उहापोह में था । बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी । भला एक शीशी से सबके रिहाई का क्या सम्बन्ध ?
प्रकट में राहुल से बोला ” तुम ठीक कह रहे हो राहुल । हम सब यहाँ से निकलने के लिए बेक़रार हैं । लेकिन तुम्हारी योजना क्या है हमें भी तो पता चले । ”
राहुल ने सबके चेहरे की तरफ ध्यान से देखा । सभी के चेहरे पर उसे एक उम्मीद की किरण नजर आ रही थी । तभी उसका ध्यान थोडा हटकर खड़े रोहित और उसके साथियों पर पड़ी ।
राहुल रोहित के पास जा पहुंचा । उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बड़े ही दोस्ताना अंदाज में उससे बोला ” रोहित ! यहाँ से निकलने के बारे में तुहारा क्या ख्याल है ? ”
रोहित ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा ” राहुल ! तुम लोग अभी यहाँ नए नए आये हो । अभी इन लोगों को नहीं जानते । ये बहुत ही बुरे लोग हैं । यहाँ से निकलने की कोशिश करते हुए पकडे गए तो ये लोग तुम्हारा वो हाल करेंगे कि दुबारा इनके खिलाफ कुछ भी करने से पहले हजार बार सोचोगे । ”
राहुल ने उसकी बात का बुरा नहीं माना । उलटे उसे समझाते हुए बोला ” रोहित ! बात तो तुम ठीक कह रहे हो । लेकिन यहाँ रखकर भी ये लोग हमारी आरती तो उतारने से रहे । और जहाँ तक मैं उनकी बातों को समझ सका हूँ कालू नाम के उस बदमाश ने तुम चारों में से किसी एक को लंगड़ा और दुसरे को अँधा बनाने का फरमान जारी कर दिया है । बाकी के दोनों का क्या करनेवाला है ये तो उपरवाला ही जाने । क्या तुम यहाँ रहकर यह सब झेलने के लिए तैयार हो ? ”
राहुल की बातें सुनकर रोहित और उसके साथी सहम से गए । अपनी बातों का समुचित प्रभाव पड़ते देखकर राहुल और जोश में उसे अपनी बात असरदार तरीके से समझाने लगा ” रोहित ! अभी इतना ही नहीं है । अँधा और लंगड़ा बनाने के बाद भी क्या जिंदगी इतनी आसान हो जाएगी ? नहीं ! रोज एक नयी मौत मरना पड़ेगा । इनके ही रहमोकरम पर जीना पड़ेगा । जो ये देंगे उसीमें गुजर बसर करना पड़ेगा । क्या तिल तिल मरने से यह बेहतर नहीं है कि कुछ कोशिश कर लिया जाये ? ”

कुछ पल रुक कर उसने आगे कहना शुरू किया , ” इसमें दोनों बातें हैं । अगर हम कामयाब हुए तब तो कोई बात ही नहीं है ।  हम यहाँ से निकल कर आजादी की सांस अपने लोगों के बीच ले सकेंगे । लेकिन अगर मान लो हम कामयाब नहीं भी हुए तो क्या होगा ? अभी जो ये हमारे साथ कर रहे हैं क्या इससे भी बुरा करेंगे ? अभी जो ये तुम्हारे साथ करने वाले हैं लंगड़ा और अँधा करने वाला काम वो तो ये लोग कभी भी कर सकते हैं । अगर मरना ही है तो क्यों न मुकाबला करते हुए मरा जाये ? ” फिर अपने साथियों की तरफ देखते हुए बोला ” क्यों भाइयों ! मैं ठीक कह रहा हूँ न ? ”
मनोज सहित सभी बच्चों ने एक स्वर में जवाब दिया ” बिलकुल ठीक ! हम कोशिश अवश्य करेंगे फिर चाहे जो हो । ”
मनोज ने कहा ” राहुल ! हमें तुम्हारी हर बात मंजूर है और हम पूरी तरह से तुम्हारे साथ हैं बस हमें क्या करना है यह पहले बता देना । हमें अपनी योजना पहले बता देना । फिर तुम जैसा कहोगे हम वैसा ही करेंगे । ”
” शाबाश ! मुझे तुम लोगों से यही उम्मीद थी । लेकिन हमें सिर्फ अपने ही नहीं वरन रोहित और उसके साथियों के बारे में भी सोचना होगा । इन्हें भी अपनी योजना में शामिल करना होगा । ” बोलते बोलते राहुल की बांछें खिल गयी थी । अब उसे अपनी योजना के कामयाब होने का पूरा भरोसा हो गया था ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।