मङ्गलाचरण
विजय हो सृष्टि,सृष्टि रचनाकार की,विजय हो साकार निराकार की।
विजय हो सूत्र सूत्रधार की,विजय हो नाविक,अरु पतवार की।
विजय हो इस असार संसार की,विजय हो उस ब्रम्ह अंडाकार की।
विजय ब्रम्ह मे समाहित अनन्त भूभानु की,विजय हो शक्तिरच्छक प्राण की।
विजयहो इस धरा गगन की,विजय हो वसुंधरा के वन उपवन की।
विजय हो राष्ट्र के सभ्य जीवन की,विजय हो भारत के तृन कन की।
विजय हो हर छेत्र के उत्थान की,लहराये पताका विश्व मे हिन्दुस्तान की।
विजय हो राष्ट्र के स्वाभिमान की,विजय हो गौरव गौरववान की।
विजय हो सत्य सत्याचरण की,विजय हो न्याय न्यायाचरन की।
विजय हो शरणागत के शरण की,विजय हो ब्रम्ह ब्रम्हचरयाचरन की।
विजय हो देश हित मरन की, विजय हो पर दुःख हरन की।
विजय हो शांति हिट समर्पण की,विजय हो मानव के मानवता वरन की।
विजय भारत के संस्कृति सम्मान की,विजय हो धर्म-विज्ञान की।
विजय वीरों के सत्य अहिंसा आन की,विजय कर्तव्य स्वधर्म हित बलिदान की।
विजय हो साहित्य वेद पुराण की,विजय हो धर्मयुक्त गीताज्ञान की।
विजय हो महापुरुषों की पहचान की,विजय हो इसदेशके
प्राचीनतम शान की।
विजय हो वीर पराक्रमी स्त्रियों की,विजय हो सीता,सावित्री सतियों की।
विजय हो मर्यादित महिलाओं की,विजय हो आदर्षभूत माताओं की।
विजय हो धर्म धर्माचरण की,विजय हो शुभकर्म कर्माचरन की।
विजय हो प्रेम प्रेमाचरन की,विजय हो मनुष्य के सदबुध्याचरन की।
विजय हो गाँव घर शहर की,विजय हो सिंधु के शत शत लहर की।
विजय हो सुबह और शाम की,विजय हो चिर भारत के नाम की।।