लघुकथा

जैसे को तैसा

सीमा के हाथ से चाय का कप क्या छुट कर गीरा घर में तुफान आ गया । उसकी सास कमला देवी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया । सोफे पर बैठे बैठे ही उसने अमर के पापा जमनादास को आवाज लगायी ” अजी सुनते हो ! महारानी ने आज फिर एक महंगा कप का सेट तोड़ दिया । मैं न कहती थी यह अपने घर में खपने वाली नहीं है । अपने दरिद्र बाप की तरह यह भी दरिद्र ही है । इतने महंगे बर्तन इसने कभी देखे भी न होंगे तो भला संभालना कैसे आएगा ? ”
” अरी भागवान ! अब मुझे क्या पता था कि इसका बाप इतना कंगाल होगा । मैंने तो सोचा था कि इसका बाप बड़ा व्यापारी है । बिना मांगे ही इतना दे देगा कि हमारा घर भर जायेगा लेकिन हम तो ठगे ही गए । पिछले रक्षाबंधन पर कार देने की कह गए थे लेकिन अभी तक कुछ नहीं आया । ऊपर से यह नुकसान अब बरदाश्त के बाहर है । लगता है अब इसके बाप से बात करनी ही पड़ेगी । दहेज़ के बाकी के पैसे कब दे रहे हैं और वो कार कब आकर हमारे यहाँ खड़ी होगी जो वो हमें देनेवाले थे ? ” कहते हुए शेठ जमनादास फोन की तरफ बढे । जैसे ही फोन के नजदीक पहुंचे फोन की घंटी बजने लगी । उन्होंने रिसीवर उठाया और कहा ” हेल्लो ! जमनादास स्पीकिंग । ”
दुसरी तरफ उनकी इकलौती लड़की मीना थी जिसकी अभी दो महीने पहले ही बड़े धूमधाम से शादी हुयी थी । ” , हेल्लो ! पापा ! मैं मीना बोल रही हूँ ! आज जेठ और ससुर ने मिलकर मुझे फिर से मारा ” कहते हुए मीना सुबकने लगी थी । शेठ जमनादास उसका रुदन सुनकर बेचैन हो गए । बोले ” बेटी ! क्या बात है ? बताओ तो उन्होंने ऐसा क्यूँ किया ? ”
” बात कुछ भी नहीं है पापा ! वो आपने जो इन्नोवा गाड़ी दी है न वो इन लोगों को पसंद नहीं है । इनको मर्सिडीज चाहिए । जब तक नहीं मिल जाता ये लोग ऐसा ही करते रहेंगे । ” कहते हुए मीना और सुबकने लगी थी ।
थोड़ी देर बाद शेठ जमनादास सोफे पर निढाल पड़े हुए थे । अब सीमा के पापा को फोन करने की कोई जल्दी नहीं थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।