उपन्यास अंश

आजादी भाग –२९

राहुल ने मुस्कुराते हुए टीपू के गालों को प्यार से थपथपाते हुए जवाब दिया ” तुमने सही सवाल किया है टीपू ! हम बेहोश होंगे तो तब न जब हम यह दवाई मिला हुआ पानी पियेंगे । लेकिन मेरी योजना है कि हमें यह दवाई पीनी ही न पड़े और उसके लिए हमें अभी से इसका इंतजाम करना होगा । ”  कहते हुए राहुल ने वह शीशी अपने हाथों में उठा ली । इत्मिनान से उसका ढक्कन खोला । शीशी में भरी हुयी पूरी दवाई राहुल ने एक कोने में ले जाकर जमीन पर उंडेल दिया । पूरी शीशी खाली होने से पहले ही राहुल ने शीशी सीधी कर दी । अब शीशी में दवाई की कुछ बूंदें ही शेष बची थीं । राहुल ने जैसे ही दवाई जमीन पर गिराई रोहित कुछ विचलित सा दिखने लगा था । लेकिन उसकी तरफ कोई ध्यान न देते हुए राहुल ने अपना काम जारी रखा । दवाई से खाली हुयी शीशी को राहुल ने नल से पानी लेकर उतनी ही मात्रा पानी की उसमें  भर दिया जीतनी उसने गिराई थी । अब शीशी में पहले जैसी ही दवाई भरी हुई दिख रही थी । राहुल ने उसे सूंघ कर भी देखा । पहले जैसी ही सड़ांध लिए हुए तेज बदबू शीशी से अभी भी आ रही थी । उसका कारण था उस तेज दवाई का शीशी के ढक्कन और उसके उपरी हिस्से में लगा होना । अब राहुल ने सभी बच्चों से मुखातिब होते हुए कहना शुरू किया ” सबने देखा मैंने क्या किया ? मैंने शीशी में से लगभग पूरी दवाई गिरा दिया है और बदले में उसमें उतना ही पानी मिला दिया है । अब हम इस शीशी को जहाँ और जैसे थी वैसे ही रख देंगे । इत्तेफाक से दवाई का रंग भी पानी से मिलता जुलता है सो यह बात अब सिर्फ हम लोग ही जानते हैं कि इस शीशी में दवाई की जगह पानी भरा हुआ है । गुंडे अपने तय कार्यक्रम के अनुसार आयेंगे और इस शीशी में से थोड़ी थोड़ी मात्रा पानी में मिलाकर हमें पिलायेंगे ताकि हम बेहोश हो जाएँ । और यहीं से हमारा अभिनय शुरू हो जायेगा । सभी लोग कान खोलकर सुन लो ! यहाँ किसी से कोई चूक नहीं होनी चाहिए । असलम भाई के यहाँ दवाई पीने के बाद हम कैसे एक एक कर आगे पीछे बेहोश हो गए थे यहाँ भी हमें ठीक वैसा ही अभिनय करना है । गुंडों को ऐसा लगना चाहिए कि हम बेहोश हो गए हैं । ध्यान रहे वो हमारी बेहोशी को परखने के लिए हमें उलट पुलट कर देख भी सकते हैं । और ऐसे में वो जैसे भी हमें छोड़ दें हमें उसी दशा में उसी तरह से रहते हुए बेहोश होने का नाटक करना होगा । समझ रहे हो न सब लोग ? किसी एक की गलती भी हमारे सारे किये कराये पर पानी फेरने के लिए काफी है । अगर तुम सब ने ऐसा कर लिया और टेम्पो में फेंकने तक अभिनय को अंजाम देते रहे तो समझो हमारी रिहाई निश्चित है । ” कहते हुए राहुल थोड़ी देर के लिए रुका ।
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद राहुल ने फिर कहना शुरु किया ” जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ ऐसा भी हो सकता है कि उन चुने गए दस बच्चों में शायद मैं न रहूँ या मनोज न रहे या हममें से आधे भी न रहें ऐसी स्थिति में जो भी टेम्पो में लादा जायेगा उन सभी को अपना नेतृत्व स्वयं करना होगा । उसकी रुपरेखा भी मैं बताये देता हूँ । टेम्पो में लादने के बाद जब टेम्पो चलने लगे कुछ ही देर में सभी को बिना  आवाज किये उठ कर बैठ जाना है । बगल में बने हुए छेद से बाहर का जायजा लेना है । जहां लगे कि कोई चौराहा या भीडभाड वाली जगह है जहाँ कोई हमारी मदद कर सकता है सभी को एक साथ शोर मचाकर या टेम्पो की दीवारों को बजाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना है । यदि हम ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो लोग हमारी मदद करें या न करें  टेम्पो के साथ चल रहे गुंडे अवश्य घबरा जायेंगे और या तो टेम्पो छोड़कर भाग जायेंगे या फिर टेम्पो खड़ा करके हमें डराने या धमकाने का प्रयास करेंगे । हमें इसी मौके का फायदा उठाना होगा । जैसे ही टेम्पो रुकेगा सभी पीछे लदे हुए खोखों को गाड़ी से बाहर फेंककर गाड़ी से बाहर कूद पड़ेंगे । गाड़ी से बाहर कूद कर हम सबको अलग अलग भागना है और जिसको जहाँ भी पुलिस वाला दिखे उससे मिलकर उसे पूरी बात बता कर बाकी बचे हुए बच्चों की मदद करनी है । भागने के दौरान ऐसा भी हो सकता है कि हममें से कोई पकड़ा जाए लेकिन उसकी चिंता नहीं करनी है क्योंकि हममें से एक  भी अगर आगे निकल गया तो उसकी मदद से सभी गुंडों को पकड़ा जा सकता है ।
इसमें मैं एक बात और कहना चाहूँगा । शहर पहुँचने के पहले भी ये गुंडे कहीं किसी ढाबे पर चाय नाश्ते के लिए या कहीं सड़क किनारे टॉयलेट के लिए भी रुक सकते हैं । हमें ऐसे मौकों पर भी भागने के लिए तैयार रहना होगा । जो भी पहला मौका हमें मिलेगा हमें उसी का फायदा उठाना है । क्या पता दूसरा मौका मिले न मिले ?  अब सभी को समझ में आई जादुई शीशी का कमाल ? इस शीशी की वजह से ही हम अपने दिमाग का इस्तेमाल करके हिम्मत और बहादुरी से बिना डरे गुंडों का मुकाबला कर सकते हैं और उनसे जीत सकते हैं । “

कुछ देर रुकने के बाद राहुल ने सभी बच्चों की तरफ ध्यान से देखा । सभी के चेहरे पर राहुल के प्रति प्यार सम्मान व विश्वास झलक रहा था । एक विजयी मुस्कान उनके ऊपर छोड़कर राहुल रोहित की तरफ बढ़ा जो उनसे अलग एक कोने में ही अपने साथियों के साथ बैठ गया था ।  उसके नजदीक पहुँच कर राहुल बैठ गया और रोहित से मुखातिब होता हुआ बोला ” रोहित भाई ! ,क्या तुम्हें हमारी योजना सही नहीं लगी । कोई शंका हो तो बताओ । हमें तुम्हारे सहयोग की आवश्यकता है । ”
रोहित ने बनावटी मुस्कान अधरों पर बिखेरते हुए राहुल से कहा ” नहीं ! मुझे कोई शंका नहीं है । लेकिन मुझे यह भय लग रहा है कि भगवान न करे अगर तुम और तुम्हारे साथी कहीं नाकामयाब हो गए तो फिर कालू नामका वह गुंडा तुम सब लोगों का क्या हाल करेगा । मुझे तो यही सब सोच कर अभी से रोना आ रहा है । मेरी मानो तो तुम भी यह रिहाई और आजादी का सपना देखना छोड़ दो । आगे जैसे तुम्हारी मर्जी । मैं तो इस योजना में तुम्हारे साथ नहीं हूँ । मैं नहीं चाहता कि तुम्हारा साथ देकर हम लोग भी कालू की नज़रों में गुनाहगार बन जाएँ । हमें उसके वहशीपन की भलीभांति जानकारी है इसलिए हमारी उसके खिलाफ कुछ भी करने की हिम्मत नहीं हो रही है । समझ गए ? ”
राहुल ने उसकी बात का बुरा नहीं माना । शायद वह उसके हावभाव देखकर पहले ही उसकी मंशा समझ गया था । रोहित का जवाब उसकी मंशा के अनुरूप ही था ।
लेकिन राहुल कहाँ हार माननेवाला था ?  वह तो अब पक्का राजनेता बन चुका था । हाँ ! इन बच्चों के लिए तो वह नेता था ही और राजनेता का एक गुण तो उसके अन्दर आ ही चुका था और वह गुण था अपने विरोधियों से हार न मानने का । राहुल अब एक अल्पमत की सरकार के मुखिया जैसा था जिसकी सरकार का भविष्य रोहित जैसे विरोधी के समर्थन पर ही टिका हुआ था । यदि उसने समर्थन नहीं दिया तो उसकी सरकार का गिरना लगभग तय था अर्थात उसकी पूूरी योजना पर पानी फिर सकता था ।
राहुल ने बड़े प्यार से रोहित के कंधे पर हाथ रखते हुए उससे आत्मीयता दर्शाने की कोशिश करते हुए पूछा ” अच्छा ये बताओ रोहित ! क्या तुमने कालू और उस साजिद नाम के गुंडे के बिच हुयी पुरी बातचीत सुनी थी ? चलो ! अगर नहीं भी सुनी तो क्या तुमने मेरी पूरी बात सुनी ? “

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।