गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : मेरे दिल पर हाथ रखो

मेरे दिल पर हाथ रखो महसूस करो फिर तेजी
ये ख़ामोशी की भाषा ना हिंदी ना अंग्रेजी

जिनको खूब सँवारा तुमने प्यार भरे हाथों से
आज उन्हीं जुल्फों के साए देखो फिर बिखरे जी

तुमसे मिलकर आज कलम पर ऐसा रंग चढ़ा है
ग़ज़लें हैं मदहोश हमारी गीत बहुत निखरे जी

फिर वैसी ही रात जो माँगू दिल धड़काने वाली
आज छुअन फिर वैसी बोलो क्या मुझको दोगे जी

कितने रंगों में रँग डाला तुमने मेरे मन को
मुस्काऊँ मैं  देख के साजन तेरी ये रँगरेजी

अर्चना पांडा 

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका