गीतिका/ग़ज़ल

प्रेम

वो समझे न समझे मेरे जज्बात को,
हमें तो मानना है उनकी हर बात को।
जब चले जाएँगें हम दुनिया से तब,
वो खुशियाँ मनायेगे हर रात को।।
किससे करें हम शिकायत किसकी
मेरा प्यार मुझसे जुदा हो गया है।
कहने को कहता मेरे पास है वो ,
खुदा जानें किस पर फिदा हो गया है।।
न चिठ्ठी न मैसेज न बातें ही होती,
आठों पहर मेरी आँखे ही रोती,
गुजरा जमाना न बातें ही करती,
मैं कैसे समझ लूँ रिहा हो गया है।।
बहुत कुछ वो मुझसे छिपाने लगे है,
कहो कुछ तो आँखे दिखाने लगे हैं।
जाने क्या मुझसे हुई भूल भारी,
मेरा प्यार मुझको सताने लगा है।।
मेरा हाल क्या है न उनको फिकर है,
मैं कैसे कहूँ उनकी खुशियों का डर है।
मैं तन्हा ही रहता हूँ यादों मे उनकी,
उन्हें याद आती किसी की उधर है।।
मेरा ख्याल रखते थे हर पल जो वे,
कहीं और ख्यालों मे डूबे हुए हैं।
दुनिया मे उनके बहुत चाहने वाले,
मेरा हाल पूछे ये किसको खबर है।।
कभी न छिपाया कोई बात मुझसे,
मगर अब तो मैसेज छिपाने लगे हैं।
बिठाया जंहा पर मुझे था उन्होंने,
वहां अब किसी को बिठाने लगे हैं।।
मैं बेचैन रहता हूँ रातों को उन बिन,
कहीं उनके मैसेज अब जाने लगें हैं।
खाली ही रहता अब मोबाइल मेरा,
मेरे फोन उनको सताने लगे हैं।।
भूलें नहीं हैं कभी भी उन्हें हम,
मगर जाने क्यों वे भुलाने लगे हैं।
कहते हैं अब वो तो कहने की बातें,
हकीकत से मुंह अब छिपाने लगे हैं।।
दुश्मन मेरे चाहते थे जो करना,
वही दोस्त को कार्य भाने लगे हैं।
किया दूर मुझको उन्होंने है इतना,
जैसे उन्हें हम बेगाने लगें हैं।।
बातें भी करने से कतराते है वे,
गैरों के जैसा बरतावने लगेहैं।
मेरे कार्यों का करते उपहास हैं वे,
सदा दिल पे नश्तर चलाने लगे हैं।।
भगे जा रहे हैं पता ही नही वे,
मुझे छोड़ पीछे भगाने लगे हैं।
उनके बिना खत्म सक्ति हुई है,
मेरी मौत के दूत आने लगे हैं।।
जरा बात करने का मौका जो मिलता,
किसी न किसी को बुलाने लगे हैं।
पता ही नही हाल होगा मेरा क्या,
हरकतों से अपनी जलाने लगे हैं।।
कभी फोन का उनको मौका न मिलता,
शिकायत पे अब वे बहकाने लगे हैं।
मेरा प्यार उनको लगा भार लगने,
इसी से वे बदला चुकाने लगे हैं।।
मेरे प्यार को न समझा उन्होंने,
इसी से भरम मे वे आने लगे हैं।
सिखाया गया उनको दुनिया का धोखा,
इसी से वे आँखे चुराने लगे हैं।।
प्यार की भीख मैंने तड़फ कर जो मांगा,
तो मुंह फेर कर देखो जाने लगे हैं।
लगाया उन्होंने ही ये रोग मुझको,
दवा मांगते ही इठलाने लगे हैं।।
बहुत खुश हैं वो अपने यारों के संग मे,
मुझे छोड़ कर अब रुलाने लगे हैं।
मेरा प्यार तो है इक ही जंहाँ मे,
रहूँ कैसे खुश जो फरमाने लगे हैं।।
ऊबते बातें करते मेरे फोन से वे,
सभी की तरफ खिसकाने लगे हैं।
आया अगरचे कोई फोन उनका,
बड़े प्यार से उठ के जाने लगे हैं।।
मेरी बात कांटों सी चुभती है उनको,
महफ़िल मे अब वे ठुकराने लगे हैं।
मुझे देख कर होती नफरत है उनको,
उन्ही के सदा गीत गाने लगे हैं।।
चाहत पे मेरी करें अचरज भारी,
मेरे प्यार को वे भुलाने लगे हैं।
करते हो क्यूँ प्यार इतना तुम मुझसे,
मुझे अब तो ये वे बताने लगे हैं।।
न रोने ही देते न गाने ही देते,
कहो तो हमे आड़े हाथों ही लेते।
कभी दर्द मेरा वे सुनते नही है,
बहुत ही बहाने बनाने लगे हैं।।
न आशा रही अब कोई जिंदगी मे,
समय जिंदगी का गवांने लगे हैं।
करता हूँ मैं प्यार से जब भी बातें,
उसे देखकर मुंह चिढ़ाने लगे हैं।।
तड़फ देखकरके मेरे प्यार की वे,
खुशी से तो अब मुस्कराने लगे हैं।
मेरा ख्याल उनको कभी भी न आता,
रिश्ता किसी का निभाने लगे हैं।।
कहा झूठे मैसेज न लिखना कभी तुम,
किसी और से वे लिखाने लगे हैं।
मेरे प्यार ने बीच मारग मे छोड़ा,
नया प्रेम मारग बनाने लगे हैं।।
मैंने किया जब बहुत जिद उनसे,
तो मुंह फेर कर देखो जाने लगे हैं।
कहा मुझसे अब हो सकता नही कुछ,
कहीं अपना दिल हम लगाने लगे हैं।।
दिखाई न पड़ना कहा घर पे मेरे,
फिर भी वंहाँ क्यूं हम जाने लगे हैं।
समझा उन्होंने मेरा प्यार मूरख,
जानकर गेंद दिल को खिलाने लगे हैं।।
समर्पित थे मुझको सभी कुछ दिखाते,
मगर फोन अब तो छिनाने लगे हैं।
अंधेरे मे भटका मेरा प्यार अब तक,
शायद सही राह जाने लगे हैं।।
गंवाया समय मूर्ख के संग रहकर,
खुशी है मुझे ज्ञान पाने लगे हैं।
कैसे सुने मूर्ख की बात छण भर,
ज्ञानी की संगत मे जाने लगे हैं।।
हमे याद आती है उनकी हमेशा,
उन्हें याद आती किसी और की है।
अकेले तड़फता मैं यादों मे उनकी,
उन्हें होश इसका कभी भी नही हैं।।
कहने को कहते सभी आई लव यू,
मगर आई लव यू समझते नही हैं।
बहुतों से कहते सदा आई लव यू ,
मगर एक से भी निभाते नही हैं।।
न कुछ भी बताया सुनाया उन्होंने,
बिना कुछ कहे ही खफा हो गए हैं।
दूरी बनाई है इतनी उन्होंने,
नदी के किनारे से हम हो गए है।।
हमें छोड़ कर वे खुशी हो रहे गर,
तो उनकी खुशी ही मुबारक रहे अब।
हमारा तो जीवन खतम हो चुका है,
निराशा मे जीवन जिये जा रहें हैं।।
उनको तो बस अपनी खुशियों का दर है,
मेरा हाल पूछे ये किसको खबर है।
जाने कहाँ गुम हुई मेरी राधे,
देखकर खाली मंदिर ही मुझको शबर है।
(2)
बढ़ा के हाथ पहले सीने से लगाया,
इतना दिया प्यार की होश मैंने गवांया।
समझाया मैंने मैं नही आपके काबिल,
रो रो के कहा कुछ नही आपका प्यार चाहिए।
सच्चे प्यार की झलक चेहरे पे आई,
मैंने भी माना पहचाना चाहत मे हुवा दीवाना।
प्यार की रस्में बढ़ाई,
बर्दास्त न थी इक पल की जुदाई।
हर पल रखता था उनकी खुशियों का ख्याल,
पर उनके दिल मे जरा भी न आया मलाल।
जब दुनिया ने मुझे ठुकराया,
तो उन्होंने साथ रहकर भी;
अपना दिल कहीं और ही लगाया।।
उनकी याद मे हम इस कदर खोये,
अब तो लगता ही नही कब जगे कब सोये।।
इतबार था मुझको मिली अब जन्नतें महफ़िल,है खूबसूरत जिंदगी मे जिंदगी उलझी हुई।
चलते गए उस राह पे जो थी दोजक से बदतर,
क्या पता था ये खुदा की चाल है समझी हुई।।
वो आये चले भी गए जिंदगी से,
बस ताबूत उनका बाकी है।
जंहां रहाकरते थे मेरे आका,
बस उस मकां का साबूत अभी बाकी है।।
गमों को दिल मे किस तरह दबा लेता हूँ,
दर्दे दिल को आँखो मे छुपा लेता हूँ;
कौन है ?किससे करें हाले दिल बंया;
हंसा के गैरों को खुद को रुला लेता हूँ।।

डॉ. जय प्रकाश शुक्ल

एम ए (हिन्दी) शिक्षा विशारद आयुर्वेद रत्न यू एल सी जन्मतिथि 06 /10/1969 अध्यक्ष:- हवज्ञाम जनकल्याण संस्थान उत्तर प्रदेश भारत "रोजगार सृजन प्रशिक्षण" वेरोजगारी उन्मूलन सदस्यता अभियान सेमरहा,पोस्ट उधौली ,बाराबंकी उप्र पिन 225412 mob.no.9984540372