उम्मीद की ज्योति
अच्छा कार्य करो तो,
दर्द मिलता है
बूरा कार्य करो तो,
खुशियाँ मिलती है
इसे संयोग कहेंगे
या जमाना बदल गया है
समझ में नहीं आता
किसे अपना कहें
किसे पराया
कैसी अनहोनी है
कैसा असमंजस है
कैसा अहसास है
क्षण-प्रतिक्षण दर्द का
दायरा बढ रहा।
धूसरित धूल में आशाएं
दमन होती इच्छाएँ
रह रह कराह उठती वो सांसे
जो जिलाती है शरीर को
थर्रा जाती है रुह
जब अतित के पन्ने को
भविष्य से जोड़ता हूँ
अंधकार की खाईं नजर आती
उसी अंधेरे में गुम हो जाता हूँ,
अनन्त इच्छाओं को पुरा करने की
कोशिश की अनवरतता,
ही कांटे चुभाती है
बार बार हथेली में
दिखता है कष्टों का भण्डार
उम्मीद की ज्योति बुझी हुई
मिलती है!!!!!!!
@@रमेश कुमार सिंह ” रुद्र ”
04-10-2016