गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कभी शब तो कभी सहर नहीं होती ।

ज़िन्दगी तन्हा बसर नही होती ।।
मान लो बात,  लौट आओ तुम ।

अब तुम बिन गुजर नही होती ।।
तुम होते हो तो खुशियां होती है ।

किसी गम की फ़िकर नही होती ।।
इश्क कहते हैं कि अँधा होता है ।

क्योंकि रूह की नजर नहीं होती ।।
जब प्यार का हाथों मे हाथ होता है ।

फिर  दुनियां की खबर नहीं होती ।।
सुबह होती हैं या शाम होती हैं ।

तेरी यादों की दोपहर नहीं होती ।।
लगता है जज्बात ये एकतरफा है ।

वरना मुहब्बत यूँ बेखबर नहीं होती ।।
तुम ना लौटे अगर तो हम ही लौट जायेंगे ।

ये इन्तजार की चाकरी उम्रभर नही होती ।।
— साधना सिंह,    गोरखपुर

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)