मुक्तक/दोहा

“दोहे”

कैसे तुझे जतन करूँ, पुष्प पराग नहाय

अपने पथ नवयौवना, महक बसंत बुलाय॥-1

रंग,रंग पर चढ़ गया, दिखे न दूजा रंग

अंग अंग रंगीनियाँ, फरकत अंग प्रत्यंग॥-2

ऋतु बहार ले आ गई, पड़त न सीधे पाँव

कदली इतराती रही, बैठे पुलकित छाँव॥-3

महुआ कुच दिखने लगे, बौर गए हैं आम

मेरे कागा बोल ना, सुबह हुई कत शाम॥-4

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ