होली ऐसे मनाइये
बैर भाव, ईर्ष्या, अभिमान जलाइये
रूठा है जो भाई उसे गले लगाइये
प्रेम सद्भावना वाली भंग खाइये
इस बार होली कुछ ऐसे मनाइये
गरीबों के चेहरे पर छाई निराशा
आओ उनके मन में जगाओ आशा
भेद भाव भूलकर गले लगा लो
थोड़ी बहुत खुशियाँ उन्हें भी बाँट दो
दो वक्त की खाने को रोटी नहीं है
तन झाँकने को लंगोटी नहीं है
वार पिचकारी का वो कैसे सहेंगे
भूखे प्यासे वो आज कैसे रहेंगे
बठरी, गुंझिया, मिठाई बाँट दो
बदन पे एक दो कपड़े ढाँक दो
महलों से झोपड़ियों तक आइये
इस बार होली कुछ ऐसे मनाइये!!
सैनिक सदा होली लहू से खेलते
गोली, बारूद अपने सीने पे झेलते
सीमा पर हर दिन रक्तिम होली है
फगवा नहीं, वन्देमातरम् बोली है
सेना की बदौलत हम खुशी मनाते
सैनिक के घर वाले आँसू बहाते
बेटे के लिये माँ गुंझिया बनाती
बचपन के सारे किस्से कह सुनाती
बाप देहरी पर बैठा राह देखता
पोते को समझाता यही कहता
तेरे पापा अभी आयेंगे देखना
रंग पिचकारी लायेंगें देखना
पोते को ऐसे ही बहलाता रहता
अपने भी मन को समझाता रहता
पत्नी बैठी आश में पति आयेंगे
इस बार होली संग संग खेलेंगे
सैनिकों के घर का यही किस्सा है
उनका दुःख दर्द अपना हिस्सा है
सैनिकों के घर खुशी बाँटने जाइये
इस बार होली कुछ ऐसे मनाइये!!
अतुल बालाघाटी, इंदौर 9755740157