लघुकथा

बदला

गाँव में जो भी यह खबर सुनता कलुआ हरिजन से सहानुभूति जताता और फिर अपने रस्ते चला जाता । लेकिन अमर के मन मस्तिष्क को इस खबर ने झकझोर दिया था । पिछली कई वारदातों की तरह ठाकुर के आवारा लडके जग्गा ने अपने साथियों के साथ मिलकर शौच के लिए खेतों में गयी कलुआ की नाबालिग बिटिया रजिया के साथ जबरदस्ती की थी लेकिन कोई भी उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं कर सका था ।
अमर अपनी नौकरी के सिलसिले में शहर में रहता था । इस घटना के बाद लगभग तीन महीने बाद अमर गाँव वापस आया । उसके साथ ही धनिया भी थी । धनिया का परिचय अमर ने अपनी मित्र के रूप में कराया । अमर और धनिया की शादी करने की बात पुरे गाँव में फ़ैल गयी ।
जग्गा के मित्र ने जग्गा को धनिया और उसकी खूबसुरती के बारे में बताया ।
नित्य की भांति धनिया उस दिन भोर में ही शौच के लिए खेतों में गयी । पहले से ही घात लगाये बैठे जग्गा और उसके साथियों ने मजबूर धनिया के रोने चिल्लाने और निवेदन पर ध्यान दिए बिना अपनी मनमानी करके ही माने । अपने कपडे संभाले जग्गा और उसके साथी जैसे ही जाने के लिए मुड़े धनिया के खिलखिलाने की आवाज सुनकर चौंक पड़े । मुड़कर देखा धनिया दोनों हाथों से ताली बजा बजा कर ठहाके लगा रही थी । जग्गा को आश्चर्य हुआ और धनिया से इसका कारण पुछा । धनिया ने अपनी खिलखिलाहट पर काबू पाते हुए  हंसते हुए बताया ” मैं कोई धनिया वनिया नहीं हूँ । मेरा नाम रेशमा है और मैं वेश्या हूँ । अमर की विनती पर तुम्हारे अत्याचारों से इस गाँव को बचाने के लिए मुझे यहाँ आना पड़ा । और मुझे ख़ुशी है कि मैंने इस गाँव के बहु बेटियों की इज्जत के लुटेरे को वह सजा दे दी है जो उन्हें कोई कानून भी नहीं देता । ”
जग्गा हंसा ” तु क्या सजा देगी हमें ?  ”
धनिया जोर से खिलखिला पड़ी और बोली ” अब आज से अपने दिन गिनने शुरू कर दो कमीनों ! मुझे एड्स है और अब तुम सब एड्स के शिकार हो । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।