कविता-सत्य !
मै सत्य हूँ – मै सत्य हूँ –
गिर गया हूँ मै भले ही,साख तो जीवंत है,
फिर से निकलेगी, नयी कोपले बसंत मे,
ये मेरा विश्वास अटल है,जीत होगी अंत मे।।
उम्र से ना तौलना ,ना वेशभूषा ना नाम से,
आदमी का कद है बढ़ता,आदमी के काम से,
हो अगर अडिग,अटल तो,मुक्त होंगे बंध से।।
तोड़ने वाले बहुत थे ,एक से बढ़कर एक थे,
थे अगर कुछ देश द्रोही, तो बहुत से नेक थे,
पर हमारा राष्ट्र जीता है, तो राष्ट्र प्रेमी संघ से।।
आप की पहचान हृदय *,आप के सत्यकर्म से,
देश भक्ति को ना तौले, सिर्फ आदमी के धर्म से,
सत्य विजयी ही रहा है, कर विजय अधर्म से।।
— हृदय जौनपुरी