काव्यमय कथा-12 : अंगूर खट्टे हैं
करते-करते सैर लोमड़ी,
एक बाग में जा पहुंची,
अंगूरों के गुच्छों वाली,
बेलें देखीं कुछ ऊंची.
अंगूरों को देख लोमड़ी,
झट खाने को ललचाई,
अंगूरों की लालच में तब,
उसने ऊंची कूद लगाई.
पहुंच न पाई फिर भी मूर्ख,
लालच छोड़ नहीं पाई,
और जोर से कूदी फिर भी,
ऊपर पहुंच नहीं पाई.
सारा बदन लगा जब दुखने,
बोली, ”अब मैं जाती हूं,
ये अंगूर हैं खट्टे भाई,
नहीं इनको मैं खाती हूं.”