बाल कविता

काव्यमय कथा-10 : कछुआ और खरगोश

एक दिवस खरगोश महाशय,
बोले कछुए राम से,
”बड़े सुस्त तुम कछुए भाई,
डरते दौड़ लगाने से.

कछुआ बोला, ”डरना कैसा!
आओ दौड़ लगाएं.”
इतना कहकर लगे दौड़ने,
तककर दाएं-बाएं.

पहले तेज़ दौड़कर सोया,
मस्ती से खरगोश,
धीरे चलकर कछुए जी ने,
रखा बनाए अपना जोश.

नींद खुली खरगोश की जैसे,
लगा दौड़ने भर-भर,
कछुआ पहले पहुंच गया था,
धीरे-धीरे चलकर.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244