गीतिका/ग़ज़ल

दीवारों से बचते है तो दरवाजे टकराते है।

इतनी कोशिशों के बाद भी तुम्हें कहाँ भूल पाते है
दीवारों से बचते है तो दरवाजे टकराते है।
कौन रुलाए कौन हँसाए मुझको इस तन्हाई में
ख़ुद के आंसू हाथों में ले ख़ुद को रोज हंसाते है।
जाने क्या लिख डाला है हाथों की तहरीरों में
अपनी किस्मत की रेखाएं उलझाते है, सुलझाते है।
तुझको किन ख़्वाबों में खोजूँ जागी जागी रातों में
ख़ुद से इतनी दूरी है कि ख़ुद को ढूंढ़ न पाते है।
तेरी यादें दिल में इस हद तक गहरी बैठ गई है
तेरी यादों के दलदल में ख़ुद को भूल जाते है।
तुमने सोचा होगा बिन तेरे हम खुश कैसे है
दिल में अश्कों का दरिया है,बाहर हम मुस्काते है।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com