“पथ उनको क्या भटकायेगा”
पथ उनको क्या भटकायेगा, जो अपनी खुद राह बनाते
भूले-भटके राही को वो, उसकी मंजिल तक पहुँचाते
अल्फाज़ों के चतुर चितेरे, धीर-वीर-गम्भीर सुख़नवर
जहाँ न पहुँचें सूरज-चन्दा, वो उस मंजर तक हो आते
अमर नहीं है काया-माया, लेकिन शब्द अमर होते हैं
शब्द धरोहर हैं समाज की, दिशाहीन को दिशा दिखाते
विरह-व्यथा की भट्टी में, जब तपकर शब्द निकलते हैं
पाषाणों के भीतर जाकर, वो सीधे दिल को छू जाते
चाहे ग़ज़ल-गीत हो, या फिर दोहा या रूबाई हो
वजन बराबर हो तो, अपना असर बराबर दिखलाते
असली “रूप” दिखाता दर्पण, जो औकात बताता सबको
जो काँटों में पले-बढ़े हैं, वो ही तो गुलशन महकाते
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)