हसरत
आज नीरू और रमेश के लिए खास दिन था, वे बहुत खुश थे. उनकी ख़ास अपनी सुदेश आंटी की हसरत पूरी हो गई थी. आज उनकी शानदार नौकरी का पहला दिन था. उन्हें याद आ रहा था 17 साल पहले का वह सौभाग्यशाली दिन जब सुदेश आंटी से उनकी मुलाकात पहली बार हुई थी. आज सुदेश आंटी विदेश में हैं, फेसबुक पर उन से सम्पर्क बराबर बना हुआ था. वे भी बहुत खुश थीं.
उस दिन भी पहली अप्रैल का दिन था. स्कूलों का समय बदल चुका था. सुदेश रोज़ से आधा घंटा पहले स्कूल जा रही थी. वह संस्कृत की अध्यापिका थी. उसी समय उसके आगे-आगे स्कूल की यूनीफॉर्म पहने, पीठ पर बस्ता लेकर एक लड़का और एक लड़की स्कूल जा रहे थे. उसी समय सामने से एक लड़का और एक लड़की कूड़ा बीनने के लिए कई झोले लादे आ रहे थे और स्कूल जा रहे उन बच्चों को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे. सुदेश की पैनी नज़र से उनकी पढ़ाई की हसरत भरी नज़र छिप न सकी. वह बच्चों को अपने पीछे आने का इशारा करके चलती रही. स्कूल के गेट पर उसने गॉर्ड से कहा- ”इन बच्चों के झोले अपने कमरे में रख दो और प्रार्थना के बाद मेरे पास एडमीशन रूम में ले आना.” ”जी मैडम,” कहकर गॉर्ड ने उनकी आज्ञा का पालन किया. एडमीशन शुरु होने के उस पहले दिन नीरू और रमेश का ही एडमीशन सबसे पहले हुआ था. पढ़ने में होशियार वे प्रतिभाशाली बच्चे तभी से हर कक्षा में छात्रवृत्ति लेकर पढ़ते रहे, आगे बढ़ते रहे. एम.बी.ए के परिणाम में नीरू ने प्रथम स्थान हासिल किया था और रमेश ने द्वितीय. कैम्पस रिक्रूटमेंट के ज़रिए अच्छी-अच्छी कम्पनियों में दोनों की नौकरी लग गई थी. दोनों सबसे पहले सुदेश आंटी को मिठाई खिलाना चाहते थे. उनके सिवाय उनका अपना था भी कौन? नाम भी उनका दिया हुआ था. मुन्नी और छोटू की जगह वे नीरू और रमेश जो हो गए थे. आज उनकी वह हसरत भी पूरी हो गई, सुदेश आंटी ने फेसबुक पर उनका संदेश पढ़ लिया था और उनकी खुशी में शामिल होने में असमर्थता जताई थी. उनका आशीर्वाद तो उनके साथ था ही. सुदेश आंटी की सहृदयता रंग लाई थी.