वक़्फ़ा
एक मुद्दत हुई है मुझको मुस्कुराए हुए
किसी से रूठे हुए किसी को गले लगाए हुए
है मुझमे कौन जो कभी नहीं थकता
किसी सफर पे, मोड़ पे कभी नहीं रुकता
यूँ तो हरचीज़ अब मेरे पास रहती है
पर जाने क्यूँ मुझे अपनी तलाश रहती है
कुछ कमी तो है जो तबियत उदास रहती है
पूरी करने को जो दास्तां अधूरी है
खुद से मुलाक़ात को एक ‘वक़्फ़ा’ ज़रूरी है
(वक़्फ़ा- INTERVAL)