कहानी

कहानी : ह…ह…ह…हलाला

‘अनवर भाईजान फ़ौरन आओ!’ रात १० बजे अनवर को अपने दोस्त असलम की बीवी सलमा की घबराई सी आवाज फोन पर सुनाई दी, तो वह कुछ ही मिनटों में उनके घर पहुँच गया। उसने देखा कि असलम और सलमा दोनों बदहवास हालत में थे। सलमा अपना सिर पकड़े बैठी थी और असलम ऐसा लग रहा था जैसे अरसे से बीमार हो।

यह नज़ारा देखकर अनवर भी परेशान हो गया। उसने असलम की ओर देखते हुए पूछा- “क्या हुआ असलम?”

असलम ने एक बार सिर उठाकर उसकी तरफ देखा जरूर, लेकिन बिना ज़बाब दिये फिर सिर झुका लिया।

अब अनवर ने सलमा की ओर देखते हुए कहा- “भाभीजान, कुछ बताओ भी!”

सलमा ने सिर उठाकर कहा- “अभी थोड़ी देर पहले ये बाहर से दारू पीकर आये। मैंने कुछ कहा तो ग़ुस्से में इन्होंने तीन बार ‘तलाक’ बोल दिया।” यह कहकर वह रोने लगी।

बात समझते ही अनवर का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। असलम को झिंझोड़कर वह गुर्राया- “साले तुझसे कितनी बार कहा है कि इतनी दारू मत पिया कर! अाज कर दी न बेवक़ूफ़ी?”

असलम का नशा कब का उतर चुका था, लेकिन उसने अनवर की बात का कोई ज़बाब नहीं दिया।

रोते हुए सलमा बोली- “अब क्या करें भाईजान?”

“करना क्या है? अभी इसको खाना खिलाकर सुला दो। सबेरे ठीक करूँगा इसे।”

सलमा रोना भूलकर बोली- “पर भाईजान, हमारा तो तलाक हो चुका है। हम एकसाथ कैसे रह सकते हैं?”

“कौन कहता है आपका तलाक हो चुका है?”

“सब कहते हैं कि तीन बार ‘तलाक’ बोल देने से तलाक हो जाता है। अब मुझे हलाला कराना पड़ेगा। नहीं तो मैं इनके लिए नापाक रहूँगी।”

“भाभीजान, जब ग़लती इसकी थी, तो आपका हलाला क्यों होगा? जो कुछ होगा इसी का होगा। नापाक आप नहीं, यह हुआ है।” फिर असलम की ओर देखते हुए कहा- “साले, रातभर तेरा पिछाला करूँगा तो सुबह तक पाक हो जाएगा।” कहकर वह हँसा।

सलमा को उसकी हँसी अच्छी नहीं लगी। बोली- “लेकिन, भाईजान, हमारा तो तलाक हो चुका है।”

“कौन कहता है कि आपका तलाक हो चुका है?”

“मौलवी साहब कहते हैं कि तीन बार ‘तलाक’ बोल देने से तलाक हो जाता है, ऐसा क़ुरान में लिखा है।”

“मौलवी झूठ बोलता है। क़ुरान में लिखा है कि दोबारा-तिबारा ‘तलाक’ बोलने के बीच कम से कम एक-एक महीने की मियाद होनी चाहिए। ऐसा कहीं नहीं लिखा कि एकदम से तीन बार ‘तलाक’ बोल देने से तलाक हो जाएगा।”

सलमा को अपने सिर से बोझ उतरता मालूम हुआ। बोली- “तो भाईजान! हमारा तलाक नहीं हुआ?”

“अभी नहीं हुआ! अभी पहला ही ‘तलाक’ हुआ है। जब यह साला एक महीने बाद दूसरा ‘तलाक’ बोलेगा, फिर उसके एक महीने बाद तीसरा ‘तलाक’ बोलेगा, तब तलाक मुकम्मल होगा। अगर नहीं बोलेगा तो नहीं होगा।”

अनवर की बात पूरी होते न होते असलम और सलमा के चेहरों पर रौनक़ वापस आ चुकी थी। असलम अनवर से लिपट गया और माफ़ी माँगने लगा।

सलमा बोली- “भाईजान, खाना तैयार है! खाकर ही जाइए।” और थोड़ी देर बाद तीनों खाना खाते हुए कहकहे लगा रहे थे।

विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ ८, सं २०७४ वि (१९ अप्रेल २०१७)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]