ग़ज़ल-2
रेत मुठ्ठी में बांधना बहुत मुश्किल है
कि पानी का बुलबुला किसे हांसिल है
कि पानी का बुलबुला किसे हांसिल है
वक्त को बांध ले ये किसने हुनर सीखा है
वक्त के साथ चला जो वही क़ाबिल है
डूबना तो है मगर फिर भी उम्मीद बढ़ाओ
बग़ैर हिम्मत मिलता ही नहीं साहिल है
होश में रहकर खुद से सवाल कर लेना
किसके दम से ये रंगीन तेरी महफ़िल है
खुद को माटी समझ हर दर्द को सह गए हम
जो नहीँ माटी वही शख्स यहाँ गाफिल है
कब ठहर जाए ज़िंदगी है ये हवा में घुली
हरेक झोंका ‘जानिब’ हवा का क़ातिल है
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’