कानून
आंखो पर पट्टी बांधकर
निष्पक्ष होकर
कर रहे हो फैसला
या बांध लिए है
चक्षुओं को इस कदर
कि अब
अपराध ही तुमको नहीं दिख रहा
तस्वीरों में तुला के दोनो पालने
दिखते तो है संतुलित मगर
तुम मन की आंखे खोल देख
क्या सचमुच ऐसा हो रहा ?
जोर जुल्म अब बढ रहा हर नगर
नित्य अपराधी समाज के मस्तक पर
नृत्य करते बरपाते है कहर
आदमी अब आदमी भी न रहा
जानवरों से पटा पड़ा है पूरा शहर
नारियाँ अब अस्मत बचाती फिर रही
भेड़िए अब ताक लगाए हर पहर
अपराधी सब खिलखिलाते घुमते है
निकलना रात और दिन को भी हुआ दूभर
तो राष्ट्र दूरदशा का भान
तनिक भी हो तुमको अगर
पट्टी खोलो न रहो मौन
हालात की भी रखो पूरी खबर
मानवता देखने को
म्यूजियम में भी भीड़ जुटने लगे
एक भी असली आदमी पिंजरे में जो डालो उधर
आब ओ हवा अब बदल गई है हर शहर की
गाँव ने भी अब दहशत में जीना सीख लिया
जरूरी है कि तुम हर फैसले के पहले
देखो आंखे तरेरकर
हर अपराध और अपराधी पर रखों पैनी नजर
दबोज लो उनकी गिरेबां पहले ही अपराध से
हाथ सममुच तेरी लम्बी हो अगर
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली ”