गीत/नवगीत

गीत : मैं काव्य जगत का इन्द्रधुनष

मैं काव्य जगत का इन्द्रधुनष।।

जीवन में जितने रंग मिले,
उन सबसे चित्र बनाये हैं।
सच्चाई कहते सुनते भी,
कुछ अच्छे मित्र बनाये हैं।
मन में मैं रखता नहीं कलुष।
मैं काव्य जगत का इंद्रधनुष।।

कविताओं में संघर्षों की,
अब बात नहीं करता कोई।
अन्यायों के प्रति लड़ने का,
उद् गार नहीं भरता कोई।
मैं अब भी हूँ संग्राम पुरूष।
मैं काव्य जगत का इंद्रधनुष।।

अब मंचों पर कविता की कम,
प्रहसन की बात अधिक होती।
बातों के धनी खड़े ऊपर,
कविता नीचे बैठी रोती।
कवि हैं गुटबाज़ी करके खुश।
मैं काव्य जगत का इंद्रधनुष।।

जिसको लगता हो लगे बुरा,
सच कहने से क्यूँ हो गुरेज़।
सच कहने के ख़तरे भी हैं,
पर रखना ही होगा सहेज।
कवि क्यूँ स्वीकार करे अंकुश।
मैं काव्य जगत का इंद्रधनुष।।

बृज राज किशोर “राहगीर”

 

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)