कविता : दोस्त होने का अर्थ
कई गलतफहमियाँ दरकिनार करनी पडती हैं
दुखों की घड़ियाँ साथ की सुई से टांकनी पड़ती हैं
सरे राह गला पकड़ कर नहीं घसीटते |
सम्बन्धों की जमीन पर प्यार का पौधा
रोपना पड़ता पड़ता है उसे धूप पानी हवा सब मुहैया करवानी पडती है |
गिलहरी की तरह ही सही कुछ बूँदें पानी कुछ कण रेत के
प्रेम सेतु बाँधने के लिए जुटाने पड़ते हैं
सामर्थ्य के रेशे रेशे से संबंध निभाने पड़ते हैं |
दोस्ती का अर्थ तब तक किसी भी शब्दकोष में नहीं मिलता
जब तक दोस्त भालू के आने पर पेड़ पर नहीं चढ़ता
भालू के आते ही अगर दोस्त पेड़ पर चढ़ जाए
उस दिन भालू से नहीं दोस्त से जरूर बचना चाहिए |
बहुत से दोस्त आपकी जेब के साथ घटते बढ़ते रहते हैं
भालू के आने से पहले तक आपके साथ साथ चलते हैं
और भालू के आते ही तुम्हें जमीन पे छोड़
पेड़ पर चढ़ जाते हैं तुम्हारा तमाशा देखने |
दोस्त होने का अर्थ यह नहीं है किचौराहे पर ढिंढोरा पीटा जाये
इसलिए आँखों से मोह का चश्मा उतार कर देखना |
तुम्हें सेतु बांधती गिलहरी भी और भालू देख
पेड़ पर चढ़ता दोस्त भी नजर आएगा
अब तुम्हें साबित करना है दोनों के प्रति
दोस्त होने का अर्थ …..||
— अशोक दर्द