गीतिका/ग़ज़ल

तुम्हारी बज्म में इक शाम तय है

1222 1222 122
तुम्हारी बज्म में इक शाम तय है ।
फ़िजा में इश्क़ का अंजाम तय है ।।

सफाई से मिलेगा क्या हमे अब ।
हमें मालूम है इल्ज़ाम तय है ।।

भटकने की जरूरत क्या है यारों ।

फ़ना के बाद भी तो धाम तय है ।।

गरीबों का उड़ा बैठे हो चारा ।
तुम्हारे हक़ में कब आराम तय है ।।

हमारी उम्र का है तज्रिबा यह ।
शराफ़त में बड़ा संग्राम तय है ।।

नई कुर्सी पे वो बैठा है जब से ।
बताते लोग हैं कोहराम तय है ।।

अगर मौला ने बख़्सी जिंदगी यह ।
हमारे हाथ का भी काम तय है ।।

वो हाकिम की खुशामद में लगा था।
उसी का आज फिर इनअाम तय है ।।

हथेली की लकीरों को जरा पढ ।
मेरी किस्मत में तेरा नाम तय है ।।

निभाओगे कहाँ तक साथ मेरा ।
तुम्हारे वक्त का तो दाम तय है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com