आज की स्वतंत्रता
15 अगस्त को हमारा पूरा देश स्वतंत्रता दिवस मनाता है, यह दिवस हमारे देश के सभी जनता के सौभाग्य का दिवस होता है। इस दिन पूरा देश मिलकर आजादी का जश्न मनाते हैं । एकता का संदेश जन-जन में फैलाते हैं। इसी दिन पल भर के लिए वीर सपूतों के लड़ने-मरने की बात एक-दूसरे से साझा करते हैं। शायद बात करने वाले लोगों को यह पता नहीं होता कि वह वीर सपूत कई धर्म के,कई जातियां, कई वर्ग के रहने वाले होते हुए भी एकता का मिसाल कायम किए। बिना जाति बिना धर्म, बिना वर्ग की टोलियां बनाई।
शायद आजादी को प्राप्त कराने वाले नहीं जानते थे कि हम जिसके लिए मर मिट रहे हैं वे लोग इस मर मिटने की कीमत, जान गवाने की कीमत नहीं समझ पाएंगे। नहीं तो हमारे देश की स्थिति कुछ अलग होती। कहा जाता है कि एक बुजुर्ग व्यक्ति एक वृक्ष को लगाता है तो यही सोचकर लगाता है कि हमारे वंशज इसके फल को खाएंगे लेकिन पैसो के आगे बच्चों ने इसे खाने के बजाए बिना विचार किए वृक्षों को काट देते हैं। शायद यही बात सोच कर उन वीर सपूतों ने अपनी जान गंवा दी और यह नहीं समझ पाए कि इस जान गवाने की कीमत भ्रष्टाचार गरीबी शोषण पद की लोलुपता के अंदर बहुत सारी आत्माओं का दम घुटेगा।
आज के दौर में आजादी के बाद भी बहुत से लोग आजाद नहीं है, बस उस समय अंग्रेजों का अधिपत्य था इस समय अपने ही कुछ खास लोगों का अधिपत्य है। आजादी के बाद संविधान का निर्माण हुआ देश को चलाने के लिए सभी लोगों को संविधान के तहत जीवन -यापन करने के लिए तरह तरह का अधिकार मिला इसी अधिकार के आड़ तले अपने ही देशवासी अपने ही देशवासी के ऊपर अधिपत्य जमा रहा है। इसी समय संविधान के तहत लोकतंत्र का जन्म हुआ। इसी लोकतंत्र के आड़ तले राजतंत्र की भावना पनप गई है। इसका प्रमाण हमारे देश के हर क्षेत्र में नजर डालने पर आपको जरूर मिलेगा चाहे वह कोई प्रतिनिधि हो या कोई सरकारी कर्मी अधिकारी कर्मचारी हो।
आज भी हमारे देश में आजादी के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी स्वतंत्रता में परतंत्रता की मार झेल रहे हैं। कोई चांद पर घूमने के लिए बेताब है तो कोई दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है। कोई महलों में आराम से करवटें बदलता है, तो कोई सड़कों के किनारे खुले आसमान को अपना छत बनाने को मजबूर है। इतना ही नहीं बल्कि सरकार की ओर से लोकतंत्र के जरिए सुविधा मुहैया सभी जन को कराई गई है। उसमें भी भेदभाव है जैसे ट्रेन के सफर को ले लेते हैं तो वहां गरीबों के लिए कोई अच्छी जगह नहीं मिल पाती है। वही एक अमीर है तो पूरी सीट पर सो कर जाएगा वहीं पर एक गरीब भीड़ का सामना करते हुए सरकारी शुल्क जमा करने के बावजूद
भी कष्ट में यात्रा करता है। उसके लिए विशेष तौर पर कोई सुविधा नहीं है।
विद्यालय शिक्षा को लेते हैं तो एक तरफ केंद्रीय विद्यालय खासकर 25 प्रतिशत आम जनता के लिए तो 75 प्रतिशत केंद्रीय कर्मी के लिए शायद यह 75 प्रतिशत केंद्रीय कर्मी एवं राज्य कर्मी होने के वजह से यहां का पठन-पाठन का कार्यक्रम नियमानुकूल चलता है, दूसरी तरफ राज्यस्तरीय अधिकांश विद्यालय में आम जनता के बच्चों की संख्या अधिक होती है शायद इसी वजह से विद्यालय का पठन-पाठन का कार्यक्रम कागजों में ज्यादा और जमीनी स्तर पर कम दिखाई देता है। शायद इसका कारण इन विद्यालय में ज्यादा बच्चे आम जनता के तथा किसानों के होते है। इस प्रकार की भावनाएं सरकार के अन्दर पलती है।
इस तरह से बहुत से ऐसे क्षेत्र है जिसमें इस प्रकार की गतिविधियां जारी है। मुझे नहीं लगता कि इनके लिए भारतीय संविधान में जगह नहीं होगी, जरुर होगी लेकिन यहां पर तो अधिकार को भूलकर लोकतंत्र की आड़ में राजतंत्र की भावना से ग्रसित हैं कहने को तो बहुतो ने चंद मिनट के भाषण में संविधान का पुजारी बन जाते हैं और भाषण समाप्त होते ही अपने अस्तित्व पर आ जाते हैं।
जब तक लूट-खसोट,भ्रष्टाचार,हत्या बलात्कार,गरीबी, समाप्त नहीं होता तक तक हमारा देश पूर्णतः आजद नहीं है क्योंकि पूर्ण आजादी तभी कही जायेगी जब प्रत्येक देशवासी शारीरिक एवं मानसिक रूप से आजाद नही हो जाता । आज का परिदृश्य हमें यही बतला रहा है। हमें शारीरिक आजादी जरुर मिली है लेकिन मानसिक आजादी अबतक नही मिल पायी।अगर देश की यही स्थिति रही तो आज की स्वतंत्रता हमें यही बतला रही है कि पूर्ण रूप से स्वतंत्र होने में काफी समय लगेगा।
@ रचनाकार-:
©रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’