सामाजिक

प्रभु के राज में रेल दिखा रही विनाश लीला

प्रभु तेरी कैसी माया? आज के वक़्त में रेलवे सुगम यात्रा करवाने का नहीं बशर्तें देश की आवाम की जान के लिए खतरा बन गई है। देश को भाजपा नीति सरकार ने बुलेट ट्रेन का सपना तो दिखा रहीं हैं, लेकिन बुलेट ट्रेन जिस देश की तर्ज़ पर देश में आ रहीं है, उससे रेलवे सबक लेती क्यों नहीं दिखती? रेलवे में चलने वाली आवाम अगर हथेली पर जान लेकर यात्रा कर रहीं है, तो उसके लिए दोषी हमारी हुक्मरानी व्यवस्था ही है। जिसे समाज हित और सामाजिक सरोकारिता से कोई वास्तविक रिश्ता नहीं रह गया है। उत्तर प्रदेश में हुई उत्कल एक्सप्रेस की दुर्घटना के प्रारंभिक कारणों से एक बार पुनः जगजाहिर हुआ, कि रेलवे को पटरी पर लापरवाही के साथ दौड़ाया जा रहा था। इस हादसे में 23 लोगों की मौत हुई है और सौ से अधिक घायल हुए हैं। जो अनुमानित आंकड़ा है, औऱ सरकारों ने कभी सटीक आंकड़े पेश भी नहीं किए, जो देश का दर्द है। इन रेल दुर्घटनाओं के बाद क्या कोई यह बताने को तैयार होता है, कि जनरल डिब्बों औऱ अन्य यात्रियों का क्या होता है? ऐसे में जब लंबे समय से रेलवे को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के दावे और वादे किये जा रहे हैं, पर पटरी की मरम्मत की खबर चालक को देने में व्यवस्था अक्षम है। फ़िर कैसे समझे रेलवे का काया-कल्प हो रहा है।

यह देश का दुर्भाग्य है कि रेल प्रबंधन पिछली दुर्घटनाओं से सबक लेने को तैयार नहीं। रेलवे का पंचवर्षीय आधुनिकीकरण कार्यक्रम प्रगति पर है, जो 130 अरब डॉलर में आधुनिक होने की सोच रहा है। इसके अलावा इसी वर्ष फरवरी में 15 अरब डॉलर पटरियों की बेहतरी के लिए सरकार ने राशि घोषित की थी, लेकिन रेल है, कि डिजिटल इंडिया के दौर में पटरी पर चलने को तैयार नहीं। रेलवे दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण रेलवे पटरियों के साथ छेडछाड और कर्मचारियों की संख्या में कमी का होना है, उस और न तो रेलवे बोर्ड का ध्यान है, न ही वर्तमान सरकार का। सैम पित्रोदा कमेटी ने रेलवे पटरियों के नवीनीकरण और 11 हजार 250 पुलों को आधुनिक करने की बात की, लेकिन उस पर आज तक अमल नहीं हो सका। हंसराज खन्ना की रिपोर्ट को भी आज तक लागू नहीं किया जा सका। देश  में 1लाख 21 हजार पुल में से 75 प्रतिशत आजादी के वक्त के है, लेकिन उसके नवीनीकरण पर सरकार का ध्यान नहीं दिख रहा है। फिर अन्य उम्मीदें जनता सरकार से कैसे करें? तीन वर्ष पूर्व जब नई सरकार ने रेल बजट पेश  किया था, तब नई ट्रेन न चलाकर कहा गया था, रेलवे की व्यवस्था में बदलाव किया जाएगा। जो बदलाव आज के स्थिति में उसी गंदगी, वही खाना, और लाइनों की बद्दतर हालात के रूप में दिखता है। फिर कैसा बदलाव हुआ, और कब?

रेलवे में सुधार की हकीकत कुछ अलग ही है। मई से 25 जून के भीतर खाने को लेकर आनलाईन प्लेटफार्म पर लगभग पांच हजार से ज्यादा शिकायतें दर्ज की गई। वही हाल साफ-सफाई, सुविधाओं को लेकर भी जारी है। इसके साथ एक अप्रैल  2016 से लेकर फरवरी 2017 तक 99 मर्तबा रेल हादसे हुए। और जिसमें 64 मर्तबा गलती रेलकर्मियों की सामने आई। ऐसे खुलासे राज्यसभा में दिए गए एक आंकड़ों में हुआ। तो क्या इस बार भी जांच होगी, छोटी मछली जाल में फंस कर पीस जाएगी, और फ़ाइल बंद। अब देश की व्यवस्था को इस परम्परा को त्यागना चाहिए, क्योंकि जब अब नए भारत की कल्पना के बीच इन रेल दुर्घटना में मौत की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। इसके इतर एक घटना ताइवान में घटती है, बिजली जाने की, उसके बाद अगर आर्थिक मामलों के मंत्री वहां इस्तीफा दे देते हैं, तो क्या हमारी हुक्मरानी व्यवस्था अपनी चिरनिंद्रा को अब त्यागेंगी? और खुद जिम्मेदारी लेने के साथ सुधार की दिशा में सार्थक पहल करेंगी, या अपने रास्ते को लोगों की मौत के ऊपर से बनाती हुई चलती रहेंगी?

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महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896