इतिहास

स्वामी विवेकानंद और उनका देश प्रेम

लेख -स्वामी विवेकानंद और उनका देश प्रेम”

अगर यह कहा जाए कि स्वामी जी का देश प्रेम अकथनीय या अवर्णनीय है तो यह कोई अतिशयोक्ति न होगी कि स्वामी जी राष्ट्र निर्माता थे । अब प्रश्न यह उठता है कि देश या राष्ट्र क्या है ? व्यक्ति और राष्ट्र एक सिक्के के दो पहलु हैं। एक तरफ व्यक्ति है तो दूसरी तरफ राष्ट्र है। एक एक व्यक्ति से मिलकर एक परिवार बनता है। अनेक परिवारों से मिलकर समाज बनता है और अनेकानेक समाजों से मिलकर राष्ट्र बनता है।
किसी भी राष्ट्र के लोग उस राष्ट्र का आईना होते हैं। जिस तरह किसी भी परिवार के बच्चों को देखकर उस परिवार के चरित्र या व्यक्तित्व का पता चलता है। उसी प्रकार किसी भी राष्ट्र के लोगों के संस्कार चरित्र व कार्यों को देखकर उस राष्ट्र के शरीर और आत्मा विषय में ज्ञात होता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि स्वामी जी ने राष्ट्र को कैसे बनाया है। तो स्वामी जी ने कोई राजनीतिक नेता बन कर राष्ट्र निर्माण नहीं किया अपितु जिनके द्वारा राष्ट्र बनता है उनका निर्माण किया, यानी मानव निर्माण, और यह मानव निर्माण कोई मशीन द्वारा नहीं किया बल्कि राष्ट्र के लोगों का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास करके किया ।

अब प्रश्न यह है कि शारीरिक विकास क्यों और कैसे ?
स्वामी जी का कहना था कि पहले अपने शरीर को स्वस्थ बनाने का प्रयत्न करो, बलवान बनाओ ,क्योंकि शारीरिक दुर्बलता मस्तिष्क को दुर्बल करेगी। बल ही जीवन है दुर्बलता मृत्यु है । बल ही परम आनंद है, शाश्वत और अमर जीवन है । दुर्बलता निरंतर भार स्वरूप है, दुख स्वरूप है इसलिए दुर्बलता मृत्यु तुल्य है। शारीरिक रूप से स्वस्थ होने पर हम किसी भी काम को निडर होकर कुशलता से कर सकते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में अपने परिश्रम द्वारा उन्नति करके देश सेवा कर सकते हैं।
अब विचारणीय विषय यह है कि स्वामी जी ने इसमें कैसे योगदान दिया ,तो स्वामी जी ने योगासन को प्रतिदिन के कार्य का आवश्यक अंग बताया है । योगासन से हमारी मासंपेशियाँ मजबूत होती हैं । शरीर लचीला होता है। मन प्रसन्न व प्रफुल्लित रहता है। आज भी विवेकानंद केंद्र द्वारा देश- विदेश में विभिन्न स्थानों पर योग शिविर लगाए जाते हैं, जहां योगासन सीख कर हजारों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
अब प्रश्न यह उठता है कि मानसिक विकास क्यों और कैसे ? स्वामी जी ने ध्यान और प्राणायाम द्वारा मन की एकाग्रता पर बल दिया है उन्होंने कहा था “-अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाओ और उस पर एक चित्त हो कर कार्य करो ।यह संसार कायरों के लिए नहीं है । भागने का प्रयत्न मत करो । सफलता या असफलता की परवाह मत करो । तुम सिर्फ अपने लक्ष्य पर निगाह रखो ।”
उदार बनो ।नीतिपरायण बनो, धुन के पक्के बनो। तुम्हारे नैतिक चरित्र में कहीं एक धब्बा न हो ।सही अर्थों में वे मनुष्य को मनुष्य बनना चाहते थे । वे हमारी कथनी और करनी को एक समान रखने पर बल देते थे । उनका कहना था पहले हम स्वयं देवता बने तत्पश्चात दूसरों को देवता बनाने में सहायता करें ।
हम अपने मानसिक विकास के लिए सदैव अच्छी पुस्तकों का पठन-पाठन करते रहे ।अपनी सोच को सदैव सकारात्मक रखें । अपने मस्तिष्क में नकारात्मक विचारों के लिए स्थान न बनाएं ।परमसत्ता पर विश्वास रखते हुए सत्य के मार्ग पर चलकर, वह कार्य करें जिससे समाज और देश का हित हो ।
हम अपनी आत्मा को इतना पवित्र बना ले कि हमारे संपर्क में आने वाली दुरात्मा भी पवित्र हो जाए ।
अब.सबसे अधिक महत्वपूर्ण और विचारणीय प्रश्न यह है कि स्वामी जी की आध्यात्मिक शिक्षा क्या है और क्यों ?

स्वामी जी कभी किसी मूर्ति की पूजा पर बल नहीं दिया है उनका मानना है कि ” नर सेवा ही नारायण सेवा है ” । अर्थात प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर है और उसकी सेवा ही पूजा है। सारा विश्व ही ईश्वर है यही परम सत्य है ।
हमारा भारतीय समाज कैसा है ? यह जानने के लिए उन्होंने सम्पूर्ण भारत की परिक्रमा की । वे किसान, मजदूर, व्यापारी, उद्योगपति, कलाकार, राजा-महाराजा सभी से मिले। वे कभी राज महलों में ,कभी झुग्गियों में तो कभी सड़क के किनारे पेड़ के नीचे रहे। वे भारत के दीन हीन पिछड़े लोगों को देखकर बहुत व्याथित हुए और घूमते घूमते वे कन्याकुमारी पहुंचे। विचार मग्न अवस्था में समुद्र के बीच शिला पर तीन दिन पूरे 72 घंटे ध्यान मग्न रहे और व से उठने के बाद भारत के उज्जवल भविष्य का स्वप्न उनकी आंखों में तैर रहा था । उन्होंने भारत की सोयी असीमित शक्ति के बारे में चिंतन किया ।
और वह भारत माँ के महान कार्य में लग गए।स्वामी जी ने विश्व बंधुत्व की भावना पर बल दिया ।उन्होंने कहा प्रत्येक जीव को भगवान स्वरूप समझो उनकी सेवा करो । उनकी सेवा साक्षात प्रभु की सेवा है ।
एक बार कुछ युवा स्वामी जी के पास आए और पूछा – धर्म क्या है ? स्वामी जी ने कहा गुलामों के लिए कोई धर्म नहीं है । पहले स्वतंत्र बनो । स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी नेता जैसे तिलक, गांधी ,नेहरू ,सुभाषचंद्र बोस आदि सभी की प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद थे ।
स्वामी विवेकानंद एक ऐसे संत थे जिनका रोम रोम राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत था । उनके सारे चिंतन का केंद्र बिन्दु राष्ट्र था। भारत राष्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए जितना चिंतन और कर्म स्वामी जी ने किया उतना पूर्ण समर्पित राजनीतिज्ञों ने भी नहीं किया । उनके कर्म और चिंतन की प्रेरणा से हजारों ऐसे कार्यकर्ता तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्र सेवा के रथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया ।
स्वामी जी ने निज मुक्ति का मार्ग छोड़ कर करोड़ों देश वासियों के उत्थान को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।
राष्ट्र के दीन-हीन लोगों की सेवा को ही वे ईश्वर की सच्ची सेवा मानते थे । उन्होंने प्रबल शब्दों में कहा -कि भले ही मुझे बार-बार जन्म लेना पड़े पर मैं उस ईश्वर की सेवा करना चाहता हूँ जो दीन-हीन निर्धनों के अंतर में निवास करता है । तो इस हम कह सकते हैं कि स्वामी विवेकानंद एक सच्चे देशभक्त और राष्ट्र निर्माता थे ।

निशा गुप्ता
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]