नई सदी में ज़रा सोचिये
कल पुर्जों पर ही यह जीवन, यदि मानव का निर्भर होगा।
नई सदी में ज़रा सोचिए, जीना कितना दुष्कर होगा।
यंत्रों की हो रहीं खेतियाँ, खाद-बीज निर्जीव डले हैं
फल क्यों जीवित हमें मिलेंगे, अगर जीन ही जर्जर होगा?
रोटी, शिक्षा, रोजगार, घर, मूल समस्याएँ जन-जन की
मिलकर सब जन अगर विचारें, समाधान भी बेहतर होगा।
कल पर ही क्यों नज़रें होतीं, काल कभी कहकर आया है?
आज अगर यह अवसर खोया, महाप्रलय का मंजर होगा।
मूढ़ खिवैया डगमग नैया, बीच भँवर में फँसी बेबसी
होश तभी आएगा शायद, जब पानी सिर ऊपर होगा।
हुक्मरान ने उलझाया है, हर हिसाब को जाल बिछाकर
सुलझेंगे तब मसले सारे, जब हर एक जन साक्षर होगा।
शिक्षित हाथों में हल लेकर, सिंचित हो यदि श्रम की खेती
खेत-खेत उपजेगा सोना, हरा गाँव का हर घर होगा।
संकल्पों की थाम लेखनी, लेख उकेरें पाषाणों पर
जो लिक्खेंगे आज ‘कल्पना’, वही मील का पत्थर होगा।
-कल्पना रामानी