गीतिका/ग़ज़ल

नई सदी में ज़रा सोचिये

कल पुर्जों पर ही यह जीवन, यदि मानव का निर्भर होगा।
नई सदी में ज़रा सोचिए, जीना कितना दुष्कर होगा।

यंत्रों की हो रहीं खेतियाँ, खाद-बीज निर्जीव डले हैं
फल क्यों जीवित हमें मिलेंगे, अगर जीन ही जर्जर होगा?

रोटी, शिक्षा, रोजगार, घर, मूल समस्याएँ जन-जन की
मिलकर सब जन अगर विचारें, समाधान भी बेहतर होगा।

कल पर ही क्यों नज़रें होतीं, काल कभी कहकर आया है?
आज अगर यह अवसर खोया, महाप्रलय का मंजर होगा।

मूढ़ खिवैया डगमग नैया, बीच भँवर में फँसी बेबसी
होश तभी आएगा शायद, जब पानी सिर ऊपर होगा।

हुक्मरान ने उलझाया है, हर हिसाब को जाल बिछाकर
सुलझेंगे तब मसले सारे, जब हर एक जन साक्षर होगा।

शिक्षित हाथों में हल लेकर, सिंचित हो यदि श्रम की खेती
खेत-खेत उपजेगा सोना, हरा गाँव का हर घर होगा।

संकल्पों की थाम लेखनी, लेख उकेरें पाषाणों पर
जो लिक्खेंगे आज ‘कल्पना’, वही मील का पत्थर होगा।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]