हास्य व्यंग्य

व्यंग्य मच्छर भगाओ अभियान 

भाईसाहब ! आजकल मच्छरों ने तंग कर रखा है। शाम ढलते जैसे ही ट्यूबलाइट जलायी और मच्छरों का पूरा कुनबा टूट पडता है। मच्छर और मौसम दोनों का गणित समझ से परे है। आधा सितंबर बीत गया है। लेकिन, मौसम का रूख समझ नहीं पाया। दिन में गर्मी पड़ रही है और सुबह ठंड। जुकाम ने नाक में दम करके रखा है। नथुनों से गंगा और यमुना दोनों चालू है। भाईसाहब ! मौसम की मार गरीब के शरीर पर गहरी छाप छोड़ जाती है। गर्मी के महीनों में जानलेवा लू भरी हवा के थपेड़ो से जान झुलसती है तो सर्दी में भयंकर सर्दी की मार से देह कांप जाती है। बरसात के मौसम में तिरपाल सही करने में समय गुजर जाता है।

ऐसे विषम हालात में गरीब को परेशान देख मच्छर कब्र से बाहर निकलते है। पूरी इच्छाशक्ति एवं मानसिकता से गरीब के शरीर में जबरदस्ती अतिक्रमण करते है। और फिर अपने खून आस्वादन कार्यक्रम को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाते है। बिलकुल ऐसे ही जैसे सरकारी बाबू गरीबीयत को देखकर प्रतिक्रिया देने लगते है। मच्छरों की तरह भ्रष्टाचारी हर ओर फैले हुए है। देश का कोई भी कोना इनसे बच नही पाया है। ये लगातार लोकतंत्र का खून पी रहे है। इन मच्छरों को खत्म करने के लिए एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग ने कुछ साल पहले दिल्ली से आवाज बुलंद की थी, वंदेमातरम की स्वरलहरियां गूंजी थी। जिससे कुछ पल के लिए मच्छरों में हडंकप मच गया था। सिर्फ देश के ही नहीं बल्कि दूर-दराज बैठे विदेश के मच्छर भी भयभीत हो गये थे।

ये बुजुर्ग मच्छरों के लिए डी.डी.टी छिड़काव साबित होने वाला था। पर समय ने पासा पलट दिया। मच्छरों को ध्वस्त करने वाला ये डी.डी.टी का छिडकाव शुरु होने से पहले ही बंद हो गया। घर के कोने में छिप गया। इसके आस-पास घूमने वालों की तो किस्मत बदल गयी, लेकिन खुद न घर के रहे न घाट के। बिलकुल यूज एन थ्रो की तरह !  मच्छरों को जिससे खतरा था, वह खतरा शांत हो गया। मच्छरों की मनमानी बढती ही गयी। पहले सौ रुपये में मान जाते थे लेकिन, नोटबंदी के बाद पांच सौ से कम में राजी होने का नाम तक नहीं लेते। मच्छरों के हौंसले बुलंद है। इन मच्छरों के आगे बड़ी से बड़ी दवा फेल है। जो दवा बनने जाता है, मच्छर उसे मलेरिया थमा देते है। इन मच्छरों की तादाद अगणित है। यह रक्तबीज की तरह एक बूंद से हजारों-लाखों पैदा हो जाते है। इन मच्छरों ने गरीब के दिन का चैन और रातों की नींद चुरा ली है। कुछ मच्छरों ने गरीबों का खून पीने के समस्त र्कीतिमान भंग कर दिये है। ये मच्छर आज तड़ीपार है। इनको पकड़ना हाथ का खेल नहीं है। इनका डंक पॉवरफूल है। अतः आज समय की मांग है मोदी जी को मच्छर भगाओ अभियान का श्रीगणेश करे।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com