गजल
रहनुमा फ़क्त हवा बाँधते हैं
घाव पर इत्र हिना बाँधते है |
खुद निभाते नहीं’ वादे कभी भी
जनता गर्दन में वफ़ा बाँधते हैं |
पंडा’ वाइज़ सभी’ हैं धन के’ कूबर
भक्त के बलि से’ खुदा बाँधते हैं |
मृत्यु सय्या सजी’ है फिर भी’ देखो
जादू’ टोना से’ क़ज़ा बाँधते हैं|
ज़ख्मे दिल जब कभी’ रिसने लगा तो
सर-ओ-पा पर वो हिना बाँधते हैं |
इक नज़र क्या मिली’ जानम से दोस्त
अब नज़र से ही’ नज़र बाँधते हैं |
कालीपद ‘प्रसाद’