कविता

असहजता….

सहज नहीं
प्रेम की व्याख्या !

जब भी चाहा मन
अपने भीतर होती क्रियाओं
प्रेम की दिव्य अनुभूतियों को

शब्दों की लड़ियों में पिरो दूँ
तब-तब असहजता के उद्दीपन
जागृत हो उठे

मन अशांत और अस्थिर
प्रेम की मीठी सुखद अनुभूतियों में
खुद को भुला बैठा

जैसे शांत नदी में कंकड़ फेकना
और उससे उत्पन्न एकांत का शोर
वैसा ही है प्रेम
असहजता में सहजता का सुकून

जब भी आँखें बंद कर महसूस करो
उतर आता है अंतस में
और संचित करता है हृदय में प्रेम।

*बबली सिन्हा

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