गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका-गज़ल”

चाय की थी चाहत गुलशन खिला दिया

सैर को निकले थे जबरन पिला दिया

उड़ती हुई गुबार दिखी दो गिलास में

तीजी खड़ी खली थी शाकी मिला दिया।।

ताजगी भर झूमती रही तपी तपेली

सूखी थी पत्तियाँ रसमय शिला दिया।।

रे मीठी नजाकत नमकीन हो गई तूँ

चटकार हुई प्याली चुस्की जिला दिया।।

उबलती रही देर तक अपने उफ़ान में

दो बूँद दूध टपका रंगत दिला दिया।।

अदरक खिलाया जैसे पीछे ही पड़ गई

स्वाद आ गया तो हँसकर गिला दिया।।

“गौतम” की चाय छलकी हिल गई हवा

कहीं दाग दे न जाए क्यूँ कर हिला दिया।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ