कविता

भय

घने अंधेरे में
जमीन पर पड़ा
वो
रस्सी का टुकड़ा
सांप सा
प्रतीत होता है
एक अनजाना सा
भय
बस यूं ही
इस मन को
छलता है…
बिल्कुल तृणवत
तुच्छ
फिर भी
पहाड़ सा
लगता है
एक अनजाना सा
भय
बस यूं ही
इस मन को
छलता है…
ये कष्ट, पीड़ा
जो दिन-रात
सताती है
किन्तु
ज्वाला में
तपकर ही
स्वर्ण
परिशुद्ध होता है
एक अनजाना सा
भय
बस यूं ही
इस मन को
छलता है…
दु:ख-भंवर में
अगर
फंस भी गये
तो क्या गम है ?
गहन सागर से ही
सीपी का मोती
निकलता है
एक अनजाना सा
भय
बस यूं ही
इस मन को
छलता है…

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com