गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

लोग तन्हाई में जब आप को पाते होंगे।
मेरा मुद्दा भी सलीके से उठाते होंगे ।।

लौटती होगी सबा कोई बहाना लेकर ।
ख्वाहिशें ले के सभी रात बिताते होंगे ।।

सरफ़रोशी की तमन्ना लिए अपने दिल में ।
देख मक़तल में नए लोग भी आते होंगे ।।

सब्र करता है यहां कौन मुहब्बत में भला।
कुछ लियाकत का असर आप छुपाते होंगे ।।

उम्र भर आप रकीबों को न पहचान सके ।।
गैर कंधो से वे बन्दूक चलाते होंगे ।।

इस हक़ीक़त की जमाने को खबर है शायद ।।
ख्वाब रातों में उन्हें खूब सताते होंगे ।।

इश्क़ छुपता ही नहीं लाख छुपाकर देखो ।
खूब चर्चे वो सरेआम कराते होंगे ।।

ज़ुल्फ़ लहरा के गुज़रते वो अदाकारी में ।
आग सीने में कई बार लगाते होंगे ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

*नवीन मणि त्रिपाठी

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