ग़ज़ल 2
मौत मेरी तुम्हें खींचकर लाएगी
तुम न चाहो तो भी रूलाएगी ।
खींच लिए पांव क्यों तूने राहे बीच
साथ चल न पाने की कसक सताएगी
मैं नहीं पर लगता है तुम ही
दिले दास्तां जहां को बताएगी ।
होगा न कोई शिकवा मुख पर
नकाब मेरे मुख से हटाएगी ।
होगा नहीं गिला होठों पे दीक्षित के
नहीं तो बात सरे आम हो जाएगी ।
— सुदेश दीक्षित