“बैठकर के धूप में सुस्ताइए”
आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रात लम्बी, दिन हुए छोटे बहुत,
अब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)