हास्य व्यंग्य

खोदा पहाड़ निकला कुछ नहीं….

कहावत है कि “ खोदा पहाड़ निकली चुहिया”,लेकिन कभी-कभी यह कहावत भी गलत साबित हो जाती है।देखा गया है कि कितना ही ऊँचा पहाड़ निर्मित कर लिया जाए,जिन्हें खोदने का जिम्मा दिया जाएगा,वे खोदने में ही इतना समय लगा देंगे कि जब पहाड़ में से खोदकर कुछ निकालना चाहेंगे तो हासिल बटे सन्नाटा ही मिलेगा।वैसे यह बात जगजाहिर सी है कि कुछ लोगों की पहाड़ बनाने में मास्टरी होती है।आप जैसा चाहें वैसा पहाड़ बनाकर रख देंगे।यूं तो राई का पहाड़ बनाने में भी लोगों की विशेषज्ञता होती है।यह सब देश काल , परिस्थिति और अवसर के अनुसार किया जाता है।
देखा जाए तो पहाड़ खोदा ही क्यों जाता है!तब बात यह भी आएगी कि पहाड़ निर्मित ही क्यों किये जाते हैं लेकिन भाई मेरे,बिना पहाड़ खड़े किये बात बनती कैसे!पहाड़ खड़ा किया किसने,यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन हाँ,पहले तो इस कहावत का अर्थ ही समझ लिया जाए जिसमें कहा गया है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया,अर्थ तो साधारण सा लगता है- “काफी मेहनत के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकले या फिर तुच्छ सा नतीजा निकले या फिर उम्मीद से कम मिले”,तो कह सकते हैं कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया।इस कहावत के चलन के पीछे की भी कहानी सोचता हूँ कि बता ही दूँ।कहानी इस प्रकार है-
“एक गाँव के पास एक पहाड़ स्थित था।उस पहाड़ से प्रतिदिन अजीबो-गरीब आवाजें आया करती थीं।आसपास रहने वाले लोगों का डर के मारे बुरा हाल था कोई भूत-प्रेत होने की बात करता तो कोई साहसी जंगली जानवर होने की।ग्राम जनों ने सभी प्रयास कर लिये लेकिन आवाज कहाँ से आती है, यह जानने में विफल रहे।जब पहाड़ से आवाज का आना बंद नहीं हुआ तो थक हारकर गाँव के चाचा चौधरी जैसे समझदार बुजुर्ग ने सलाह दी कि डर दूर करने के लिए पहाड़ को ही खोदा जाए जिसमें से आवाज आती है।गाँव भर के लोग पहाड़ खोदने के काम में जुट गए।सभी लोग खुश थे कि चलो अब पहाड़ खोदने पर पता चल जाएगा कि आवाज कहाँ से आती है और इस तरह से डर भी मिट जाएगा।काफी दिनों की मेहनत के बाद पहाड़ को खोदने में सफल हुए।इतने दिनों की मेहनत के बाद वहाँ से एक चुहिया निकल कर भागी,उसे देखकर लोगों की हँसी का ठिकाना नहीं रहा।इसके बाद वहाँ मौजुद ज्ञानी व्यक्ति के मुँह से यही निकला- “खोदा पहाड़ निकली चुहिया”,हालांकि आवाज आना अभी भी बंद नहीं हुई है लेकिन तभी से यह बात कहावत के तौर पर इस्तेमाल होने लगी है।
लगता है अब देश के इतिहास में फिर यही कहानी दोहराई गई है।यह टू जी नाम की खौफनाक आवाज कहीं से पैदा हो गई।कई लोग इस खौफ के लपेटे में आ गये ।अब वास्तव में इस खौफ के पीछे भ्रष्टाचार रूपी भूत-पिशाच था या फिर महज आवाज थी,यह तो रब ही जाने क्योंकि पंच परमेश्वर के फैसले पर ऊंगली नहीं उठायी जा सकती!हो हल्ला मचाने वालों ने तो डरा ही दिया था कि यह नर पिशाच सभी को खा जाएगा लेकिन सत्रह साल की मेहनत के बाद उन्होंने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिखाया।अब आप यह मत पूछना कि दूध में से पानी अलग कैसे होता है।दूध में पानी तो मिल ही चुका है और उसने अपना स्वरूप दूध के रूप में स्थापित कर लिया है।बहरहाल देशवासियों के डर को दूर करने के लिए पहाड़ खोद दिया गया है।सत्रह वर्षों की मेहनत के बाद पहाड़ खोदा जा सका है और खोदे गये पहाड़ में से चुहिया निकलकर भाग गई है और आवाज बदस्तुर जारी है।हाँ,आप-हम सब चाहें तो हँस-हँसकर लोटपोट हो सकते हैं।नहीं क्या!

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009