कविता

बहुत कुछ बाकी है

खो गई हैं पलकों में कई रातें
हवा में गुम हो गई मेरी ख़ामोशी

एक गीली शाम
ओस में लिपटी घास
और सर्द हवायें
गूंज रही है सीने में
दिल की अज़ीब धकधक
जिसकी गति सुन
हम रहते हैं सहज
कि अभी मौत आनी बाकी है

कहीं मैंने सुना था–
कि मौत भी होती है ख़ूबसूरत
कई प्रश्न दौड़ पड़े
मेरे दिमाग के अन्दर
किसने लिखा होगा इसको?
जो जिन्दगी से हार गये या
मौत को भी प्यार करते थे
जिन्दगी की तरह!
पता नहीं
कब कहाँ,कौन मिल जाये
तो क्या साँसों से
महसूस होती है यह दुनिया

शब्द है कि मोती
जो बिखरते चला जाता है
पन्ना -दर -पन्ना
फिर भी कहने को रह जाता है
बहुत कुछ बाकी
और ठिठक जाती है क़लम
शब्दहीन… महामौन।।

कात्यायनी सिंह

जन्म--22 दिसम्बर पति--स्वं दीपक सिंह पैतृक स्थान--सासाराम (बिहार) शिक्षा --आरम्भिक --बाल भारती पब्लिक स्कूल, सासाराम B.sc -- श्री शंकर महाविद्दालय ,,सासाराम सम्मान -- युग सुरभि सम्मान (उत्कृष्ट लेखन ) पुष्पवाटिका,मधुराक्षर, गुफ़्तगू , दस्तक टाइम्स पत्रिका में समय समय पर रचनायें प्रकाशित। प्रकाशित किताब -- अंतर्मन की कथायें (साझा कहानी संग्रह ) प्रकाशित किताब -- वो चरित्रहीन सम्पर्क --गीताघाट काॅलोनी,फजलगंज सासाराम, रोहतास बिहार ---821115 ई मेल --- lekhikapooja @gmail.com