सदाबहार काव्यालय-31
कविता
मैं पतंग बन जाऊं
मेरा मन है
कि
मैं पतंग बन जाऊं
मकर संक्रान्ति और पतंगोत्सव की
पावन वेला पर
सूर्यदेवता की साक्षी में
पतंग की तरह
नील गगन की नीलिमा में लहराऊं
मैं पतंग बनूं
शांति की
सौहार्द की
सद्भाव की
इंसानियत की
प्रेम की
निर्मल आनंद की
परोपकार की
अतिथि के सत्कार की
खुशियों के संचार की
महिलाओं के सम्मान की
देश की ऊंची-उज्जवल शान की
महंगाई के उपचार की
भ्रष्टाचार के संहार की
भेदभाव के उन्मूलन की
सत्पथ के दिग्दर्शन की
और
सब तक यह संदेश पहुंचाऊं
कि
कैसे मानव जीवन की लाज बचेगी
कैसे इंसान की इंसनियत ज़िंदा रहेगी
मेरा मन है
कि
मैं पतंग बन जाऊं
मकर संक्रान्ति और पतंगोत्सव की
पावन वेला पर
सूर्यदेवता की साक्षी में
पतंग की तरह
नील गगन की नीलिमा में लहराऊं.
लीला तिवानी
Website : https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/
मैं पतंग बन जाऊं
मकर संक्रान्ति और पतंगोत्सव की
पावन वेला पर
सूर्यदेवता की साक्षी में
पतंग की तरह
नील गगन की नीलिमा में लहराऊं. लीला बहन , कविता बहुत सुन्दर लगी .
सदाबहार काव्यालय-नभ में
उड़ रही हैं काव्य-पतंगें
आप भी लाएं अपनी पतंग को
आओ उड़ाएं मिल के पतंगें.
आप सभी को पतंगोत्सव, मकर संक्रांति, पोंगल, माघी, उत्तरायण और बिहू का त्योहार मुबारक हो.