सदाबहार काव्यालय-40
गीत
पिंजरे का तोता
चोंच है मेरी लाल-लाल
और पंख हैं मेरे हरे-हरे
आज बताता हूं मैं तुमको
जख्म हैं मेरे कितने गहरे!
सुन्दरता ही मेरी दुश्मन
निज किस्मत पर रोता हूं
चुप न रहूंगा आज कहूंगा
मैं पिंजरे का तोता हूं.
पेड़ के कोटर में ही मेरी
दुनिया से पहचान हुई
बीता बचपन हुआ बड़ा मैं
हर मुश्किल आसान हुई
स्वच्छ गगन में विचरण करता
हरियाली में सोता हूं
चुप न रहूंगा आज कहूंगा
मैं पिंजरे का तोता हूं.
कलरव करता पेड़ों पर मैं
तरह-तरह के फल खाता था
पीकर ठंडा जल झरने का
फूला नहीं समाता था.
बंधु-सखा सब साथ हैं मेरे
एक झुण्ड में होता हूं
चुप न रहूंगा आज कहूंगा
मैं पिंजरे का तोता हूं.
छोटी सी लालच का मैंने
मूल्य बड़ा चुकाया है
डाल के दाना जाल बिछाके
मुझको गया फंसाया है.
लाकर कैद किया पिंजरे में
हालत पर मैं रोता हूं
चुप न रहूंगा आज कहूंगा
मैं पिंजरे का तोता हूं.
कैद नहीं थे तुम फिर भी
सबने इतनी कुरबानी दी
बहनों ने सुहाग दी तो
लड़कों ने अपनी जवानी दी
आजादी के जज्बे की मैं
कदर बड़ा ही करता हूं
चुप न रहूंगा आज कहूंगा
मैं पिंजरे का तोता हूं.
जैसे तुमको जान से प्यारी
है अपनी ही आजादी
कैद करो मत किसी जीव को
सब ही चाहें आजादी
सब आजाद हों यह सोचूं मैं
जागूं चाहे सोता हूं
चुप न रहूंगा आज कहूंगा
मैं पिंजरे का तोता हूं.
राजकुमार कांदु
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राजकुमार भाई ,पिंजरे का तोता बहुत बढ़िया रचना है .
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, सदाबहार काव्यालय में आपकी प्रतिनिधि रचना आपकी कविता हमें बहुत अच्छी लगी. आपकी सशक्त लेखनी के साथ-साथ आपकी अद्भुत भावाभिव्यक्ति को भी सलाम. मनुष्य हो या पिंजरे का तोता, आजादी सभी को बहुत प्यारी है. आज नेताजी सुभाषचंद्र का जन्मदिन है. उनके मन में भी आजादी की सतरंगी आकांक्षा ने जन्म लिया और आजादी हमारी होकर रही. इतनी सुंदर काव्य-रचना के आपका आभार व अभिनंदन.