मुक्तक
1-
कुर्सियों पर चढ़े लुटेरे हैं ।
हर तरफ अजगरों के घेरे हैं ।
शहर बिजली में चमकते होंगे,
गाँव में अब तलक अंधेरे हैं ।
२-
देखकर भाव सौतेला बालपन टूट के रोईं ।
विदाई के वक्त वह घरवालों से छूट के रोईं ।
मौत के बाद दस्तावेज बनवाते रहे लड़के,
लड़कियाँ बाप की अर्थी पर फूट फूट के रोईं ।
—————-डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी