गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सौगात इश्क की मिली दर्द पहली बार है
खबर सारे जहाँ को हुई वाशिंदा बीमार है

गुमसुम रहा करता है महफिलों में वो
खुश रहने को तन्हाईयों की दरकार है

जान बूझकर हारा दिल की बाजी वो
दिलबर पर उसकी एक जीत उधार है

गलत नहीं हुआ कभी फैसला उसका
इस बार वो इंसानियत का शिकार है

कन्हैया हो गया वो सबसे करता इश्क
बस यही खूबसूरत मुकद्दस लूटमार है

उम्र हो गयी तेरी मोहब्बत कर ले ‘मणि’
खुदा की रहमत का तू भी तलबगार है

मनीष मिश्रा मणि