ऐसे बनती है
जब पौ फटने के बाद
चिड़ियों का स्वरवंदन होता है
जब सिकर दोपहर में
पसीने को छिटक कर
किसान बीज बोता है
हल के फालों से
धरती सुसज्जित होती है
जब गुड़िया गरीब की
कुटिया में रोटी के लिए रोती है
ऐसे बनती है “कविता”
जब पौ फटने के बाद
चिड़ियों का स्वरवंदन होता है
जब सिकर दोपहर में
पसीने को छिटक कर
किसान बीज बोता है
हल के फालों से
धरती सुसज्जित होती है
जब गुड़िया गरीब की
कुटिया में रोटी के लिए रोती है
ऐसे बनती है “कविता”