कोई तुमसा कहीं न पाएंगे
सारी दुनिया भी ढूंढ़ आएंगे।
कोई तुम सा कहीं न पाएंगे।
फासले कितने भी बढ़ा लो तुम,
फासले फिर भी हो न पाएंगे।
जब भी तनहा कहीं पे होंगे हम,
बस तसव्वुर तेरा सजाएंगे।
हिज़्र की काली काली रातों में,
तेरी यादों की लौ जलाएंगे।
हम बनाकर तुम्हे ग़ज़ल अपनी,
दिल की धड़कन से गुनगुनाएंगे
याद आओगे जब भी तुम ‘नीरज’
हम तुम्हे आस पास पाएंगे।
— नीरज निश्चल