गीतिका/ग़ज़ल

मै हर रोज दुआओं में रब से तुझे ही मांगूगा

आखिर यूँ ही सताने की कोई तो हद होगी ही ।
तेरे लौट न आने की कोई तो हद होगी ही ।

मै हर रोज दुआओं में रब से तुझे ही मांगूगा,
रब के मान न जाने की कोई तो हद होगी ही ।

देखूंगा अंजामे दिल इश्क में क्या क्या होता है,
मुझको यूँ तड़पाने की कोई तो हद होगी ही

जामे मुहब्बत भरता हूँ दिल के इस पैमाने में,
दिल के इस पैमाने की कोई तो हद होगी ही ।

इक दिन सब भ्रम टूटेंगे इक दिन राज खुलेंगे सब,
दिल को यूँ भरमाने की कोई तो हद होगी ही ।

सहता हूँ तूफानों को यही सोचकर मै ‘नीरज’,
तूफानों के आने की कोई तो हद होगी ही ।

नीरज निश्चल

जन्म- एक जनवरी 1991 निवासी- लखनऊ शिक्षा - M.Sc. विधा - शायर सम्पादन - कवियों की मधुशाला पुस्तक